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सबसे बड़ी जेल में सलाखें नहीं होतींबस एक तनख्वाह..एक रोज़मर्रा की दिनचर्या.. और हफ्ते में एक छुट्टियाँ होती हैं..||

  • Writer: ELA
    ELA
  • May 7
  • 1 min read

"सबसे बड़ी जेल हमेशा लोहे की सलाखों से नहीं बनी होती। कभी-कभी ये जेल एक सुरक्षित तनख्वाह, एक बंधी-बंधाई रोज़मर्रा की दिनचर्या और हफ्ते में मिलने वाली एक छुट्टी में छुपी होती है। हम इस 'सुविधा' और 'स्थिरता' के मोह में अपनी असल आज़ादी को खो बैठते हैं — अपने सपनों, रचनात्मकता और जुनून को धीरे-धीरे उस समयसारिणी में कैद कर देते हैं जो हमें 'सुरक्षित' ज़रूर लगती है, लेकिन भीतर ही भीतर हमारी आत्मा को घुटन देती है। ऐसी जेलें दिखाई नहीं देतीं, मगर महसूस ज़रूर होती हैं – हर उस सुबह जब हम अलार्म पर जागते हैं, न कि अपने अंदर के उत्साह पर।"




सबसे बड़ी जेल में सलाखें नहीं होतीं

बस एक तनख्वाह..

एक रोज़मर्रा की दिनचर्या.. 

और हफ्ते में एक छुट्टियाँ होती हैं..||



The biggest prison has no bars

Just a salary..

A daily routine..

And one holiday a week..||



**सबसे बड़ी जेल... सलाखों वाली नहीं होती।**

वो दिखती है आरामदायक कुर्सी पर बैठते हुए,

हर महीने आने वाली *तनख्वाह* में,

सुबह 9 से शाम 6 तक की *दिनचर्या* में,

और हफ्ते में मिलने वाली *एक छुट्टी* में।


हम सोचते हैं — “ज़िंदगी सेट है।”

पर अंदर ही अंदर,

हम *ख्वाबों की उड़ान* छोड़कर

सिर्फ *जीने की आदत* में ढल जाते हैं।


जेल वो नहीं जो बाहर दिखे,

जेल वो है जो *भीतर* बनी हो —

जहाँ मन कैद हो और आत्मा चुप।


अगर तुम भी खुद को उस अदृश्य कैद में पाते हो,

तो एक सवाल खुद से ज़रूर पूछो:

**"क्या मैं ज़िंदगी जी रहा हूँ...

या सिर्फ दिन गुजार रहा हूँ?"**



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