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“पात्र का चयन”

  • Writer: ELA
    ELA
  • 12 minutes ago
  • 2 min read

जीवन में पीड़ा अक्सर परिस्थितियों से नही चयन की चूक से जन्म लेती है हम सही भाव लेकर गलत पात्र चुन लेते है और फिर वही भाव बोझ बनकर उम्र भर ढोते रहते है!हर कोई हमारे प्रेम, विश्वास, मौन और संघर्ष का पात्र नहीं होता,कुछ लोग सिर्फ सुनने आते हैं, समझने नही, कुछ लोग साथ चलने का वादा करते है लेकिन मोड़ पर हमें ही दोषी ठहराकर आगे बढ़ जाते है, गलत पात्र के सामने सही होना भी अपराध बन जाता है वहाँ संवेदनशीलता कमजोरी कहलाती है और सच्चाई अकड़,

ऐसे में पीड़ा स्वाभाविक है क्योंकि आपने अपना अमूल्य

उस जगह रख दिया जहाँ उसकी कीमत ही नहीं थी!-

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सही पात्र का चयन शोर नहीं करता वो आपकी चुप्पी पढ़ लेता है वो आपकी टूटन पर सवाल नही बल्कि आपके साथ बैठकर मरहम बनता है वहाँ आपको खुद को साबित नहीं करना पड़ता क्योंकि आप जैसे है वैसे ही पर्याप्त होते है,पीड़ा-मुक्त होना कोई वरदान नही ये एक समझदार चुनाव का परिणाम है जहाँ आप अपने शब्दों को तौलते नही आँसू छुपाते नही और हर बार खुद को छोटा करके संबंध नहीं बचाते -- वही सही पात्र होता है!-

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इसलिए याद रखिए रिश्ते निभाने से पहले, पात्र पहचानना सीखिए क्योंकि पात्र अगर सही चयन हुआ,

तो पीड़ा अपने-आप रास्ता बदल लेती है!



प्रेरक कहानी: “पात्र का चयन”

अदिति हमेशा मानती थी कि जीवन की पीड़ा हालातों से आती है—कभी पैसों की कमी, कभी लोगों की बेरुख़ी, कभी किस्मत की सख़्ती। लेकिन समय ने उसे एक अलग ही सच सिखाया। उसने देखा कि सबसे गहरी पीड़ा तब जन्म लेती है जब भाव सही होते हैं, पर पात्र गलत चुने जाते हैं

अदिति ने अपना प्रेम, विश्वास और मौन उन लोगों को दे दिया जो सुन तो लेते थे, पर समझते नहीं थे। जो साथ चलने का वादा करते थे, पर जैसे ही रास्ता कठिन हुआ, मोड़ पर उसी को दोषी ठहराकर आगे बढ़ गए। वहाँ उसकी सच्चाई “अकड़” कहलाने लगी और उसकी संवेदनशीलता “कमज़ोरी”। सही होना भी अपराध बन गया, क्योंकि सामने वाला पात्र ही गलत था।

समय बीतता गया। वह अपने ही भावों का बोझ ढोती रही—हर बार खुद को छोटा करती, हर बार संबंध बचाने के लिए अपने आँसू छुपाती। तब उसे समझ आया कि उसने अपना सबसे अमूल्य—अपना मन, अपना भरोसा—ऐसी जगह रख दिया था जहाँ उसकी कोई कीमत ही नहीं थी।

फिर जीवन में एक मोड़ आया। इस बार उसने शोर करने वालों को नहीं, ख़ामोशी समझने वालों को चुना। वह पात्र उसकी चुप्पी पढ़ लेता था, उसकी टूटन पर सवाल नहीं करता था, बल्कि चुपचाप उसके पास बैठकर मरहम बन जाता था। वहाँ उसे खुद को साबित नहीं करना पड़ा, क्योंकि वह जैसी थी, वैसी ही पर्याप्त थी।

तब अदिति ने जाना—पीड़ा-मुक्त होना कोई चमत्कार नहीं, एक समझदार चयन का परिणाम है। सही पात्र के साथ शब्द तौलने नहीं पड़ते, आँसू छुपाने नहीं पड़ते, और हर बार खुद को छोटा करके रिश्ते बचाने की ज़रूरत नहीं होती।

संदेश:रिश्ते निभाने से पहले पात्र पहचानना सीखिए। क्योंकि अगर पात्र का चयन सही हो जाए, तो पीड़ा अपने-आप रास्ता बदल लेती है—और जीवन हल्का, सच्चा और शांत हो जाता है।

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