इंसान की सफलता तब शुरू होती है.।जब वह दुनिया को नहीं.।खुद को बदलना शुरू कर देता है..।।
- ELA
- Jun 4
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इंसान की सफलता वास्तव में तब शुरू होती है जब वह दुनिया को बदलने की कोशिश छोड़कर खुद को बदलना शुरू करता है। बाहर की परिस्थितियाँ हमेशा हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं, लेकिन अपनी सोच, आदतें और नजरिया हम खुद तय कर सकते हैं। जब व्यक्ति भीतर से बदलाव लाता है — अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करता है, अपनी गलतियों से सीखता है और खुद को बेहतर बनाने का प्रयास करता है — तब वह सच में सफल होने की राह पर चल पड़ता है। क्योंकि असली क्रांति बाहर नहीं, भीतर से शुरू होती है।
इंसान की सफलता तब शुरू होती है.।
जब वह दुनिया को नहीं.।
खुद को बदलना शुरू कर देता है..।।

A person's success begins when he starts changing himself, not the world.
दुनिया को बदलने से पहले खुद को बदलो, असली क्रांति वहीं से शुरू होती है।
जो खुद में बदलाव लाता है, वही दुनिया में बदलाव कर सकता है।
सच्ची जीत तब मिलती है जब इंसान खुद पर विजय पा लेता है।
दुनिया को कोसने से बेहतर है, खुद को सुधारना शुरू कर दो।
सफ़लता बाहर नहीं, भीतर के बदलाव में छिपी होती है।
बदलाव की शुरुआत आईने से करो, मंज़िल खुद-ब-खुद नज़दीक आ जाएगी।
जो इंसान खुद को बदल लेता है, उसके लिए दुनिया बदलना मुश्किल नहीं होता।
खुद को बेहतर बनाने का सफर ही सफलता की असली राह है।
सफ़लता की शुरुआत
दुनिया को बदलने निकला था मैं,
हर गलती में दोष उन्हें देता था मैं।
फिर एक दिन खुद से मुलाकात हुई,
आईने में *असल सच्चाई* की बात हुई।
समझा —
बदलनी है दुनिया? तो शुरुआत मुझसे हो,
हर उजाला बाहर का, पहले अंदर से रोशनी हो।
न सुधरे हालात, जब तक सोच न बदले,
मन के अंधेरों से लड़ने की हो हिम्मत अपने अंदर ही पले।
छोटे-छोटे कदम, पर हर दिन सुधार,
यही है असली बदलाव की असली पहचान।
जो खुद को जीता है, वही असली विजेता,
क्योंकि खुद से बड़ी कोई नहीं चुनौती या द्वंद्वता।
तो छोड़ो शिकवे, छोड़ो शिकायतें,
उठो, जागो, खुद से कर लो शराफतें।
सफ़लता वहीं से करवट लेती है,
जहाँ इंसान *दुनिया नहीं, खुद को* बदलने लगता है।
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