"अपने सर पर हाथ रख कर कहना जरा!! कि तुम मुझसे प्रेम नहीं करती ?" - लड़के ने अमोघ अस्त्र का प्रयोग किया।
लड़की खामोशी से मुस्कुराती रही। चेहरे का भाव ऐसा जैसे अपनी हार स्वीकार रही हो।
"बोलो ना!" - लड़के का स्वर थोड़ा उत्तेजित था।
"अच्छा ठीक है!! करती हूँ!! तो?" - लड़की अपनी दृष्टि लड़के के चेहरे पर गड़ाई हुई थी।
"तो" की वजह से लड़का हड़बड़ा गया। अचानक से कुछ उत्तर नहीं सूझा। खुद को संभालता सोच सोच कर बोलने लगा - "देखो! फैसला कठिन तो होगा....परंतु अगर हम सच्चा प्रेम करते हैं, तो हम हर कठिनाई मिलकर पार कर लेंगे। क्या तुम साथ दोगी?"
"परंतु वो "कठिन फैसला" है क्या?" - लड़की के स्वर में जिज्ञासा थी।
"चलो! हम भाग कर शादी कर लें!!" - लड़के ने तत्परता से कहा।
लड़की जोर से खिलखिला पड़ी। बहुत देर तक हँसती रही। लड़का बुद्धू की तरह उसे देखे जा रहा था।
जब खिलखिलाहट थोड़ी थमी, तब लड़की खुद को संयम करती हुई बोली - "तो.....तुम्हारे विचार से.....भाग कर शादी कर लेना बहुत कठिन कार्य है.......है न?"
"यकीनन यार!" - लड़का गर्व से सीना चौड़ा करता हुआ बोला।
अचानक से लड़की धीर गंभीर नजर आने लगी। उसी गंभीरता से उसने पूछा - "सुनना चाहते हो कि कठिन फैसले क्या होते हैं?" लड़के के चेहरे पर असमंजस की स्थिति में मूक सहमति के भाव आए।
"सुनो मित्र! मैं जिस समाज से आती हूँ, वहाँ इज्जत को दौलत से बहुत ऊपर तरजीह दी जाती है। मेरे गाँव की सात लड़कियाँ गाँव से बाहर पढ़ते हुए भाग कर शादी कर ली। बदले में लगभग सत्तर लड़कियों को उनके अविभावक पढ़ने के लिए गाँव से बाहर नहीं जाने दिया। ऐसे माहौल में भी मेरे पिता ने न सिर्फ मुझपर विश्वास जताया बल्कि गाँव वालों के लाख मना करने के बाद भी, उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए शहर भेजा। तुम्हें इसका अंदाजा है कि यह कितना कठिन फैसला रहा होगा?"
लड़के की घिग्घी बंध गयी। हकलाते हुए बस इतना ही कहा - "तुम खुद पढ़ी लिखी समझदार लड़की हो! क्या तुम्हारी मर्जी की कोई अहमियत नहीं?"
"समझदार हूँ....इसलिए सब समझती हूँ। चंद पलों की उत्तेजना के लिए हृदय पर सदियों का बोझ नहीं लेना चाहती। और रही बात मर्जी की....तो मेरे बाप की मर्जी.....मेरी मर्जी!!" - लड़की ने लड़के की प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा नहीं की। कंधे उचका कर वहाँ से चल दी। जाते जाते पलट कर लड़के को बोलती गयी - "हे!!
अगर मुझको पाना है......तो तुम्हें मेरे पिता को जीतना ही होगा!
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