"मुझे बस तुम्हारी ही ज़रूरत है..."
कभी-कभी ज़िंदगी के सबसे शोरगुल वाले हिस्से में भी एक अजीब सी खामोशी घेर लेती है। भीड़ होती है, बातें होती हैं, हँसी भी होती है… लेकिन फिर भी कहीं एक कोना खाली रहता है। और उस खाली कोने में, मैं अक्सर बैठी मिलती हूँ — खुद से, और उस अधूरेपन से, जो सिर्फ तुम्हारी गैर-मौजूदगी से पैदा होता है।
लोग समझते हैं कि मैं मज़बूत हूँ। हर वक़्त मुस्कुराती हूँ, बातों में जान डालती हूँ, खुद को औरों के लिए आसान बना लेती हूँ। पर ये कोई नहीं देखता कि उस मज़बूती के पीछे कितनी बार मैं अकेली रोई हूँ, कितनी रातें बिना बात के जागकर सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार किया है। कभी बस इसलिए, कि तुम पूछ लो — "क्या हुआ?" और मैं टूटकर कह सकूँ — "मुझे सिर्फ तुम्हारी ज़रूरत है।"
मैं ये नहीं कहती कि मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती। ज़िंदगी चलती रहती है, आदतें बन जाती हैं, लेकिन क्या तुम्हें पता है कि मैं कितनी बार "ठीक हूँ" बोल कर खुद से झूठ बोल जाती हूँ? कितनी बार सोचती हूँ कि काश तुम उस वक़्त मेरे पास होते, जब किसी अपने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। जब मन उलझा होता है, दिल भारी होता है और दुनिया को मेरी हँसी चाहिए होती है — उस वक़्त मेरा सारा वजूद बस एक बात के लिए तरसता है कि कोई हो जो मेरी आंखों में देखे और कहे — "मैं हूँ तुम्हारे साथ।"
बहुत बार मैं अकेली पड़ जाती हूँ। ऐसे नहीं कि कोई आसपास नहीं होता, बल्कि इसलिए कि कोई समझने वाला नहीं होता। कोई ऐसा जो बिना बोले मेरी खामोशी को पढ़ ले, जो मेरी आंखों के पीछे के सवालों को देख पाए, जो मेरे झूठे मुस्कुराने के पीछे का दर्द महसूस कर सके। मैं बहुत बार थक जाती हूँ सब समझाने से। तब चाहती हूँ कि तुम खुद समझ जाओ — बिना कहे, बिना शोर के — बस रहो।
मुझे कभी दिखावे वाला प्यार नहीं चाहिए। ना रोज़-रोज़ के महंगे तोहफे, ना सोशल मीडिया पर पोस्ट होने वाला रिश्ता। मुझे चाहिए वो सुकून, जो सिर्फ तुम्हारी मौजूदगी से आता है। जब तुम सामने हो और कुछ कहने की भी ज़रूरत नहीं रहती — बस तुम्हारा होना काफी होता है।
मैं जानती हूँ, मैं ज़िद्दी हूँ, कभी-कभी उलझी हुई भी। पर क्या तुम इतना कर सकते हो — कि जब मैं खुद से भी दूर हो जाऊँ, तब तुम मेरा हाथ पकड़ लो? जब मैं गुस्से में कुछ कड़वा कह दूँ, तब भी तुम मेरी आँखों में देखो और समझो कि वो सब मेरे डर की आवाज़ें थीं, मेरी तन्हाई की चीखें थीं, मेरा 'मुझे मत छोड़ो' कहने का तरीका था।
क्योंकि जब मैं कहती हूँ, "मुझे सिर्फ तुम्हारी ज़रूरत है,"
तो वो सिर्फ एक जुमला नहीं होता —
वो मेरी हर टूटन, हर चुप्पी, हर उम्मीद की आखिरी कोशिश होती है।
अगर तुम रहो, तो मैं दुनिया से लड़ सकती हूँ।
अगर तुम रहो, तो मैं अपनी सारी उलझनें सुलझा सकती हूँ।
अगर तुम रहो, तो मैं टूटकर भी फिर से जुड़ सकती हूँ।
तुम रहो, बस सच्चे दिल से रहो — क्योंकि सच ये है...
मुझे और किसी की नहीं, सिर्फ तुम्हारी ज़रूरत है।
