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- Life Changing Story In Hindiअक्सर हम जीवन को उसकी बाहरी परतों से समझने की कोशिश करते हैं — नौकरी, पढ़ाई, पैसा, प्रतिष्ठा। हम मान लेते हैं कि यही सब कुछ है। डॉक्टर बनना, इंजीनियर बनना, कोई बड़ा व्यवसाय खड़ा करना — ये सभी ज़रूरी हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। ये चीज़ें जीवन को चलाने के लिए जरूरी हैं। लेकिन क्या सिर्फ चलाते रहना ही काफी है? सवाल ये है — हम किसके लिए जीते हैं? क्या आपने कभी कोई कविता पढ़ी है जो सीधे दिल में उतर गई हो? कोई गीत सुना है जिसने कुछ अनकहा कह दिया हो? कोई क्षण ऐसा जिया है जो शब्दों से परे था — सिर्फ महसूस करने जैसा? यही वो क्षण हैं जो हमें याद रहते हैं। और यही वो चीज़ें हैं जिनके लिए हम जीते हैं। हमारे भीतर भावनाओं की एक दुनिया है — प्रेम, सौंदर्य, आशा, चाहत, दुःख, और कई बार बस एक गहरी चुप्पी। ये चीज़ें हमें एक-दूसरे से जोड़ती हैं। ये ही वो एहसास हैं जो हमें इंसान बनाते हैं। कविता, कला, संगीत — ये सब हमारे अंदर की उस गहराई को छूते हैं जिसे हम शब्दों में नहीं कह सकते, लेकिन महसूस जरूर कर सकते हैं। सच तो ये है कि हम सुबह उठकर केवल दफ़्तर जाने या ज़िम्मेदारियाँ निभाने के लिए नहीं जीते। हम जीते हैं उस एक मुस्कान के लिए, उस एक लेख के लिए जो दिल को छू जाए, उस एक शाम के लिए जिसमें आसमान कुछ कह जाए। हम जीते हैं उस कविता के लिए जो हमें खुद से मिलवा दे। क्योंकि ज़िंदगी सिर्फ साँस लेने का नाम नहीं है। ज़िंदगी उस पल का नाम है जब हमें अपने होने का एहसास होता है।लाइक
- Life Changing Story In Hindiवे छोटी-छोटी बातों में भी नफरत ढूंढ लेते हैं — जैसे किसी ज़ख़्मी शरीर को मक्खियाँ जल्दी घेर लेती हैं, ठीक वैसे ही ये लोग भी वहीं रुकते हैं जहाँ घाव हो, जहाँ कोई असुरक्षा हो, जहाँ कोई डर या चोट हो। इन लोगों के लिए प्रेम, विश्वास, सहानुभूति जैसी भावनाएँ अजनबी होती हैं। उनके भीतर पहले से ही एक मानसिकता बन चुकी होती है — शक करने की, दूरी बनाने की, तोड़ने की। ये लोग दूसरों के शब्दों में अर्थ नहीं, बल्कि मंशा तलाशते हैं, और अक्सर उन्हें वही मिलता है जो वो पहले से सोच चुके होते हैं। हमने यह देखा है — एक दोस्त जो देर से जवाब देता है, तो वह "बदल गया है"। एक रिश्तेदार जो एक बार फोन नहीं उठाता, "अब घमंडी हो गया है"। एक पति या पत्नी जो एक दिन चुप रहता है, "शायद अब प्यार नहीं रहा"। रिश्तों में शक नफ़रत का पहला बीज होता है। एक बार का वाकया याद आता है — दो सहेलियाँ थीं, बहुत करीबी। एक ने दूसरी की बात को मज़ाक में थोड़ा टाल दिया। दूसरी को लगा कि वह अब उसकी इज़्ज़त नहीं करती। उस एक पल की असहमति ने सालों की दोस्ती में दूरी ला दी। हुआ कुछ नहीं था — सिर्फ एक छोटी सी बात, एक न समझी गई भावना, और उसमें पनपता गया वो मक्खी जैसा शक, जो अब दिल को कुतरने लगा। नफ़रत की सबसे बड़ी त्रासदी यही है — ये चुपचाप पनपती है। इसे गुस्से की ज़रूरत नहीं होती, बस थोड़ी सी असुरक्षा, थोड़ा सा अकेलापन, थोड़ा सा 'क्यों नहीं?' और बहुत सा 'शायद वो अब ऐसा नहीं रहा…'। कई बार लोग हमारे करीब आते हैं — रिश्ते बनते हैं, गहराई पनपती है। पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनका प्यार ही डर से शुरू होता है — "कहीं मुझे छोड़ न दे", "कहीं मुझे धोखा न दे"। और जब प्यार डर से शुरू होता है, तो उसमें भरोसे की ज़मीन नहीं होती — वहां शक की दीवारें खड़ी होती हैं। नफ़रत करने वाले लोगों की मानसिकता असल में खुद के भीतर से आती है। उनका अनुभव, उनका दुःख, उनका पिछला टूटन — ये सब मिलकर उन्हें ऐसा बना देते हैं। और सबसे दुखद बात ये है कि वे अक्सर उस व्यक्ति से नफ़रत करने लगते हैं जो उन्हें सबसे ज़्यादा प्यार करता है — क्योंकि वही उनके सबसे करीब होता है, वही उन्हें सच दिखाता है, और शायद वही उन्हें सबसे ज़्यादा डराता है। रिश्ते खिलते हैं समझ से, और मुरझाते हैं अनुमान से। इसलिए अगर कोई रिश्ते में चुप हो, तो समझिए कि वह थका हुआ हो सकता है — नाराज़ नहीं। अगर कोई बात अधूरी कहे, तो हो सकता है कि वह सब कह न पाया हो — छिपा नहीं रहा हो। शक मत कीजिए — पूछिए, सुनिए, महसूस कीजिए। नफ़रत किसी भी रिश्ते की मौत होती है, और दुख की बात यह है कि वो कभी अचानक नहीं आती — वह धीमे-धीमे, रोज़, छोटी-छोटी बातों से जन्म लेती है। जैसे हर दिन न दिए गए पानी से एक पौधा सूखता है, वैसे ही हर दिन अनसुनी, अनदेखी, और गलत समझी गई भावनाएँ रिश्तों को मुरझा देती हैं। इसीलिए — अगली बार जब दिल में शक आए, तो रुकिए। नफ़रत से पहले संवाद की कोशिश कीजिए। और याद रखिए — प्यार में संदेह नहीं, सहारा होता है।लाइक
- For Boys"मुझे बस तुम्हारी ही ज़रूरत है..." कभी-कभी ज़िंदगी के सबसे शोरगुल वाले हिस्से में भी एक अजीब सी खामोशी घेर लेती है। भीड़ होती है, बातें होती हैं, हँसी भी होती है… लेकिन फिर भी कहीं एक कोना खाली रहता है। और उस खाली कोने में, मैं अक्सर बैठी मिलती हूँ — खुद से, और उस अधूरेपन से, जो सिर्फ तुम्हारी गैर-मौजूदगी से पैदा होता है। लोग समझते हैं कि मैं मज़बूत हूँ। हर वक़्त मुस्कुराती हूँ, बातों में जान डालती हूँ, खुद को औरों के लिए आसान बना लेती हूँ। पर ये कोई नहीं देखता कि उस मज़बूती के पीछे कितनी बार मैं अकेली रोई हूँ, कितनी रातें बिना बात के जागकर सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार किया है। कभी बस इसलिए, कि तुम पूछ लो — "क्या हुआ?" और मैं टूटकर कह सकूँ — "मुझे सिर्फ तुम्हारी ज़रूरत है।" मैं ये नहीं कहती कि मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती। ज़िंदगी चलती रहती है, आदतें बन जाती हैं, लेकिन क्या तुम्हें पता है कि मैं कितनी बार "ठीक हूँ" बोल कर खुद से झूठ बोल जाती हूँ? कितनी बार सोचती हूँ कि काश तुम उस वक़्त मेरे पास होते, जब किसी अपने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। जब मन उलझा होता है, दिल भारी होता है और दुनिया को मेरी हँसी चाहिए होती है — उस वक़्त मेरा सारा वजूद बस एक बात के लिए तरसता है कि कोई हो जो मेरी आंखों में देखे और कहे — "मैं हूँ तुम्हारे साथ।" बहुत बार मैं अकेली पड़ जाती हूँ। ऐसे नहीं कि कोई आसपास नहीं होता, बल्कि इसलिए कि कोई समझने वाला नहीं होता। कोई ऐसा जो बिना बोले मेरी खामोशी को पढ़ ले, जो मेरी आंखों के पीछे के सवालों को देख पाए, जो मेरे झूठे मुस्कुराने के पीछे का दर्द महसूस कर सके। मैं बहुत बार थक जाती हूँ सब समझाने से। तब चाहती हूँ कि तुम खुद समझ जाओ — बिना कहे, बिना शोर के — बस रहो। मुझे कभी दिखावे वाला प्यार नहीं चाहिए। ना रोज़-रोज़ के महंगे तोहफे, ना सोशल मीडिया पर पोस्ट होने वाला रिश्ता। मुझे चाहिए वो सुकून, जो सिर्फ तुम्हारी मौजूदगी से आता है। जब तुम सामने हो और कुछ कहने की भी ज़रूरत नहीं रहती — बस तुम्हारा होना काफी होता है। मैं जानती हूँ, मैं ज़िद्दी हूँ, कभी-कभी उलझी हुई भी। पर क्या तुम इतना कर सकते हो — कि जब मैं खुद से भी दूर हो जाऊँ, तब तुम मेरा हाथ पकड़ लो? जब मैं गुस्से में कुछ कड़वा कह दूँ, तब भी तुम मेरी आँखों में देखो और समझो कि वो सब मेरे डर की आवाज़ें थीं, मेरी तन्हाई की चीखें थीं, मेरा 'मुझे मत छोड़ो' कहने का तरीका था। क्योंकि जब मैं कहती हूँ, "मुझे सिर्फ तुम्हारी ज़रूरत है," तो वो सिर्फ एक जुमला नहीं होता — वो मेरी हर टूटन, हर चुप्पी, हर उम्मीद की आखिरी कोशिश होती है। अगर तुम रहो, तो मैं दुनिया से लड़ सकती हूँ। अगर तुम रहो, तो मैं अपनी सारी उलझनें सुलझा सकती हूँ। अगर तुम रहो, तो मैं टूटकर भी फिर से जुड़ सकती हूँ। तुम रहो, बस सच्चे दिल से रहो — क्योंकि सच ये है... मुझे और किसी की नहीं, सिर्फ तुम्हारी ज़रूरत है।