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- For Girlsवासना है तुम्हारी नजरों में...तो मै क्या क्या ढकूं तू ही बता क्या करूं ? कि चैन की जिंदगी जी सकूं।। साडी पहनती हूं तो तुझे मेरी कमर दिखती है, चलती हूं तो मेरी लचक पर अंगुली उठती है।। दुप्पटे को क्या शरीर पर नाप के लगाउ मै। कैसे अपने शरीर की संरचना को तुमसे छुपाउ मैं... पीठ दिख जाए तो वो भी "काम" निशानी है। क्या क्या छुपाउ तुमसे, तुम्हारी तो मेरे हर अंग को देख के बहकती जवानी है। घाघरा चोली पहनू तो स्तनो पर तुम्हारी नजर टिकती है, पीछे से मेरे नितंम्बो पर तेरी आंखे सटती है..।। केश खोल के रखू तो वो भी बेहयाई है। क्या करे तू भी, तेरी निगाहों मे समायी "काम" परछाई है।। हाथो को कगंन से ढक लूं.. चेहरे पर घुंघट का परदा रख लूं.. किसी की जागिर हूं दिखाने के लिए अपनी मांग भर लूं.. पर तुम्हे क्या परवाह मैं किसकी बेटी, किसकी पत्नी, किसकी बहन हूं..।। तुम्हारे लिए तो बस तुम्हारी वासना को मिलने वाला चयन हूं.. सिर से पांव के नख तक को छुपा लूंगी..तो भी कुछ नहीं बदलेगा, तेरी वासना का भूजंग तो नया बहाना😥 बनकर के हमें डस ही लेगा।। ......... ...... ......... ...... ......... ...... ..... ..... ..... ((स्त्री श्रंगार ही इसीलिए करती है कि खूबसूरत दिखे और लोग उसकी सराहना और तारीफ करें.... घूरती नज़रों की नज़र और नज़रिए से ही अंदाजा लग जाता है कि पुरूष सम्मान दे रहा है या.....)) स्त्री तो स्त्री है... क्या मेरे घर की...क्या तेरे घर की..✍️
- For Girlsतो इस उम्र में सभी लड़कियों का मन होता है शादी करने का अपने पति के साथ आलिंगन होने का क्यों की शरीर के हार्मोन हमे संकेत देते हैं की हमारा शरीर अब शारीरिक संभोग के लिए तैयार है मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जैसा अक्सर कई लड़कियों के साथ होता है। हर नए लड़के में मैं अपना हमसफ़र तलाशती, और कभी-कभी दिन में ही सुहागरात के सपने देखने लगती। लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं था कि मेरा चरित्र खराब था। हर लड़की एक उम्र के पड़ाव पर अपने शरीर और भावनाओं में बदलाव महसूस करती है — यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। मैं करियर को लेकर बेहद जुनूनी थी। ऑफिस का काम और आगे बढ़ने की लगन इतनी थी कि शादी की बात हर बार टलती चली गई। सोच यही थी कि पहले खुद को स्थापित कर लूं, फिर घर-परिवार के बारे में सोचूंगी। जब मेरी उम्र 23 साल थी, तो मेरी दादी शादी का दबाव डालने लगीं। कहती थीं, “कम से कम मरने से पहले तेरे पति को देख लूं।” लेकिन मैं अपने सपनों में खोई हुई थी — और शादी फिलहाल मेरी प्राथमिकता नहीं थी। कब 23 से 28 हो गई, पता ही नहीं चला। अब मां भी कहने लगीं, “बुढ़ापे में घर बसाओगी क्या?” मैं चिढ़ जाती — “28 कोई उम्र है शादी की?” दरअसल, सोशल मीडिया और बॉलीवुड का प्रभाव इतना था कि मुझे लगने लगा, शादी का फैसला सिर्फ तब लेना चाहिए जब मन पूरी तरह तैयार हो। बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियाँ कहती थीं कि "शादी से पहले खुद को जानो, खुद को समय दो", और मैंने भी मान लिया कि यही रास्ता सही है। लेकिन 31 की उम्र में जब पीरियड्स के दौरान असामान्य दर्द और ज्यादा ब्लीडिंग होने लगी, तो डॉक्टर ने साफ कहा — "अगर फैमिली की प्लानिंग है, तो अब देर मत कीजिए। शरीर की अपनी सीमाएं होती हैं।" घर आकर इंटरनेट खंगाला तो देखा कि फिल्मी सितारे अंडाणु (एग) फ्रीज करवा लेते हैं — ताकि जब चाहें तब मां बन सकें। यह सुनकर राहत तो मिली, लेकिन जब हकीकत जाना तो समझ आया कि यह सुविधा हर किसी के लिए नहीं होती। मुंबई के एक बड़े अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि अंडाणुओं की सबसे अच्छी गुणवत्ता 25 से 27 की उम्र के बीच होती है — मेरी उम्र 31 पार कर चुकी थी। उपर से एग फ्रीजिंग का खर्च — हर महीने करीब 30,000 रुपये। अब समझ आया कि समय की अनदेखी ने कितना बड़ा मोड़ बदल दिया है। आखिरकार, 33 की उम्र में मेरी शादी एक 36 साल के व्यक्ति से हुई। पति बहुत अच्छे हैं, साथ भी मजबूत है, लेकिन चार साल बीतने के बाद भी हम माता-पिता नहीं बन पाए हैं। अब दादी की वो बात बार-बार याद आती है — “शादी कर लो, वरना बहुत देर हो जाएगी।” जिस करियर को बनाने में इतने साल लगाए, अब वही कमाई इलाज और टेस्ट पर खर्च हो रही है। आज मैं हर उस युवा से कहना चाहती हूँ — कि करियर ज़रूरी है, लेकिन जीवन के हर पड़ाव का एक समय होता है। जैसे पहली माहवारी एक निश्चित उम्र में आती है, वैसे ही मातृत्व के लिए भी एक सही उम्र होती है। हीरोइनों और सेलेब्रिटीज़ को देखकर अपने फैसले न लें। वे अपनी चमक और विकल्प पैसे के दम पर खरीद सकती हैं — हम नहीं। इसलिए सोच-समझकर, शरीर और समय का सम्मान करते हुए निर्णय लें। ताकि आगे चलकर पछताना न पड़े — और जीवन का हर पल सच्चे अर्थों में जिया जा सके।
- Life Changing Story In Hindiएक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी। दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले... हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है.. बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?" कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं.. घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी... खैर.. अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी.. कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए.. दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें.. लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!... दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा.. समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा..... आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं.. क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही... मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा.. शिक्षा- कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करेलाइक