राघव और सिया की कहानी किसी फिल्मी इत्तेफ़ाक़ से कम नहीं थी। दोनों की मुलाकात किसी पार्टी या कॉलेज में नहीं, बल्कि एक अस्पताल के शांत कमरे में हुई थी। राघव वहाँ अपनी बीमार माँ के लिए दवाई लेने आया था और सिया अपने पिता के इलाज के लिए। दोनों की आँखों में दर्द था, मगर उस दर्द के पीछे एक अद्भुत शांति भी थी — जैसे दोनों की रूहें एक-दूसरे को पहचान गई हों।
पहली मुलाकात में कोई "हाय-हैलो" नहीं हुआ, बस एक नज़र मिली थी जो बहुत कुछ कह गई थी।फिर धीरे-धीरे मुलाकातें बढ़ीं। कभी अस्पताल की कैंटीन में, कभी पार्क में। बातचीत बहुत साधारण थी, मगर एहसास बहुत गहरा। सिया कहती थी —“मुझे नहीं पता ये रिश्ता क्या है, लेकिन जब तुम पास होते हो, तो डर भी कम लगने लगता है।”
राघव मुस्कराकर कहता —“शायद ये रिश्ता दिल का नहीं, रूह का है... क्योंकि दिल तो अक्सर भर जाते हैं।”
समय बीता, उनके घरों में खुशियाँ लौटीं। लेकिन अब दोनों की ज़िंदगी में एक नई उलझन थी — क्या वो अपने रिश्ते को नाम दें?सिया ने एक दिन पूछा —“अगर कल मैं चली जाऊँ, तो क्या तुम मुझे भूल जाओगे?”राघव ने धीरे से कहा —“भूलने के लिए यादें चाहिए होती हैं... और तुम तो मेरी रूह का हिस्सा बन चुकी हो।”
साल बीतते गए, वक्त ने दोनों को अलग रास्तों पर डाल दिया। सिया विदेश चली गई, और राघव अपने करियर में व्यस्त हो गया। लेकिन अजीब बात यह थी कि दोनों ने कभी एक-दूसरे से "अलविदा" नहीं कहा। बस एक दिन बिना कुछ बोले रास्ते अलग हो गए, जैसे कोई किताब बंद कर दी गई हो — पर कहानी अधूरी रह गई हो।
कई साल बाद, एक दिन राघव एक पुराने मंदिर गया। वहाँ दीप जलाते समय उसे एक जानी-पहचानी हँसी सुनाई दी। उसने पलटकर देखा — वही सिया थी, बिल्कुल पहले जैसी... बस आँखों में और गहराई आ गई थी।
दोनों मुस्कराए, बिना किसी सवाल के, बिना किसी शिकायत के। सिया बोली —“देखा, दिल तो कई बार भर गया होगा, लेकिन ये रिश्ता अब भी ज़िंदा है।”राघव ने उसकी ओर देखा और कहा —“क्योंकि ये रिश्ता दिल से नहीं, रूह से जुड़ा था।”
उस दिन के बाद उन्होंने फिर कभी एक-दूसरे से बात नहीं की, लेकिन जब भी राघव अकेला होता, उसे हवा में सिया की मौजूदगी महसूस होती — जैसे वो कह रही हो,“रिश्ता ऐसा बनाओ जो रूह से बंधा हो... दिल तो अक्सर भर जाया करते हैं।”
और राघव समझ गया — कुछ रिश्तों को किसी नाम की ज़रूरत नहीं होती, क्योंकि वो वक़्त, दूरी, और जीवन से परे — आत्मा से जुड़े होते हैं।
रिश्ता ऐसा बनाओ जो रुह से बंधा हो.!
दिल तो अक्सर भर जाया करते हैं.!
