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- For Girlsमहिलाओं का यौन जीवन समाज में लंबे समय तक उपेक्षित या संकोच का विषय रहा है, जबकि यह जीवन के एक बेहद स्वाभाविक और महत्वपूर्ण पहलू से जुड़ा हुआ है। आधुनिक शोध और चिकित्सा विज्ञान यह स्पष्ट कर चुके हैं कि एक स्वस्थ और संतुलित यौन जीवन न केवल महिला की शारीरिक सेहत को लाभ पहुंचाता है, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर भी उसकी भलाई में योगदान देता है। 1. शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव ● हार्मोनल संतुलन और ब्रेन केमिस्ट्री: यौन गतिविधि के दौरान शरीर में ऑक्सीटोसिन, एंडोर्फ़िन्स, डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे रसायनों का स्राव होता है। ये हार्मोन मानसिक शांति, सुकून, और खुशी की अनुभूति कराते हैं। यह हार्मोनल बदलाव महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य और दिन-प्रतिदिन के मूड को स्थिर रखने में मदद करता है। ● प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) में सुधार: कई अध्ययन यह दर्शाते हैं कि नियमित और संतुलित यौन संबंध महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बना सकते हैं। इससे सामान्य संक्रमणों (जैसे सर्दी-जुकाम) से बचाव में मदद मिलती है। ● हृदय और रक्तचाप पर सकारात्मक असर: सेक्स के दौरान हृदय गति बढ़ती है और रक्त प्रवाह में सुधार होता है, जो हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है। साथ ही, यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। ● बेहतर नींद: संभोग के बाद शरीर और मस्तिष्क को गहरी शांति मिलती है, जिससे नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है। यह विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए फायदेमंद है जो अनिद्रा या तनाव के कारण नींद से जूझ रही हैं। 2. मानसिक और भावनात्मक लाभ ● तनाव और चिंता में राहत: यौन क्रिया के दौरान मस्तिष्क में तनाव कम करने वाले हार्मोन रिलीज़ होते हैं, जो तनाव, चिंता और चिड़चिड़ेपन को कम करते हैं। नियमित रूप से सेक्स करने वाली महिलाएं अक्सर मानसिक रूप से अधिक स्थिर और शांत महसूस करती हैं। ● आत्म-सम्मान और आत्म-स्वीकृति: जब कोई महिला अपनी यौन इच्छाओं को समझती और व्यक्त करती है, तो वह खुद को अधिक स्वीकार करने लगती है। यह आत्मविश्वास बढ़ाता है और शारीरिक छवि (body image) के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है। ● भावनात्मक जुड़ाव और रिश्तों में मजबूती: सकारात्मक और संतुलित यौन अनुभव जीवनसाथी या पार्टनर के साथ भावनात्मक संबंधों को मजबूत करते हैं। स्पर्श, आलिंगन, और अंतरंग क्षण गहरे विश्वास और जुड़ाव की भावना को जन्म देते हैं। 3. महत्वपूर्ण पहलू जिन्हें समझना ज़रूरी है ● यौन सुख और संतुष्टि में भिन्नता: हर महिला की यौन इच्छाएं, ज़रूरतें और अनुभव अलग होते हैं। कुछ महिलाएं अधिक सक्रिय यौन जीवन पसंद करती हैं, जबकि कुछ के लिए भावनात्मक जुड़ाव अधिक मायने रखता है। कोई "सही" या "गलत" तरीका नहीं है ज़रूरी है खुद को जानना और अपनी इच्छाओं को स्वीकार करना। ● संवाद और साझेदारी: एक स्वस्थ यौन जीवन की कुंजी है खुला संवाद। अपने साथी से खुलकर बात करना, अपनी पसंद-नापसंद, इच्छाएं और सीमाएं साझा करना बेहद ज़रूरी है। ● यौन असहजता या दर्द को नज़रअंदाज़ न करें: अगर किसी महिला को सेक्स के दौरान दर्द, जलन या किसी प्रकार की असहजता महसूस हो रही है, तो यह सिर्फ "मानसिक स्थिति" नहीं होती इसके पीछे चिकित्सकीय कारण हो सकते हैं। ऐसे में गायनेकोलॉजिस्ट या सेक्शुअल हेल्थ एक्सपर्ट से परामर्श लेना ज़रूरी है। 4. यौन स्वतंत्रता का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव ● अपनी इच्छाओं को समझना: यौन स्वतंत्रता का मतलब केवल सेक्स करना नहीं, बल्कि यह भी है कि महिला अपनी इच्छाओं, सीमाओं और सहमति को समझे और व्यक्त करे। जब महिला अपने शरीर और इच्छाओं के साथ सहज होती है, तो यह आत्मिक और मानसिक शांति लाता है। ● अपराधबोध और शर्म की भावना से बाहर आना: परंपरागत सोच के चलते महिलाएं अपने यौन अनुभवों को लेकर अक्सर गिल्ट, शर्म या डर महसूस करती हैं। यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। खुद को समझना, स्वीकारना और सम्मान देना ही मानसिक आज़ादी का पहला कदम है। महिलाओं का यौन जीवन केवल एक जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक समग्र अनुभव है जो उनके शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित करता है। इसे समझना, खुलकर स्वीकार करना, और सकारात्मक रूप से जीना महिलाओं के व्यक्तिगत विकास और सम्पूर्ण जीवन गुणवत्ता (quality of life) को बेहतर बना सकता है। यौन जीवन पर चर्चा करना कोई वर्जित विषय नहीं, बल्कि यह महिलाओं की स्वस्थता, आत्म-निर्भरता और आत्मसम्मान से जुड़ा एक आवश्यक हिस्सा है जिसे खुलकर और सम्मानपूर्वक समझा जाना चाहिए।
- Hindi Motivational Quotesगाँव के किनारे एक बूढ़ा आदमी रहता था — नाम था हरिनारायण।उसके चेहरे पर सैकड़ों अनुभवों की लकीरें थीं, लेकिन बोलता बहुत कम था।लोग उसे “मौन बाबा” कहते थे, क्योंकि वह ज़्यादा बातें नहीं करता था। वो सुबह-सुबह उठकर नदी किनारे बैठ जाता, दूर तक पानी की लहरों को निहारता और मिट्टी में अपनी उँगलियों से कुछ रेखाएँ बनाता।लोग कई बार उससे पूछते —“बाबा, आप इतने शांत क्यों रहते हैं? कुछ बोलते क्यों नहीं?”वो बस मुस्कुरा देता और कहता,“बोलने से ज़्यादा सुनने में सच्चाई मिलती है बेटा।” गाँव के लोग उसे अजीब समझते थे। कुछ कहते, “यह आदमी तो पागल है, कभी गुस्सा नहीं करता, किसी बात का जवाब नहीं देता।”पर जो उसे समझता था, वो जानता था कि उसकी खामोशी में गहराई है — जैसे शांत झील के नीचे अनकहे रहस्य। एक दिन गाँव में एक झगड़ा हुआ।दो परिवार एक ज़मीन को लेकर भिड़ गए। दोनों पक्ष हरिनारायण के पास पहुँचे।“बाबा, फैसला कीजिए! किसकी ज़मीन है ये?”हरिनारायण ने बस उन्हें देखा। कुछ नहीं बोला।दोनों पक्ष झल्ला गए — “आप कुछ कहते क्यों नहीं?” वो बस उठे, दोनों को साथ लेकर नदी किनारे गए।वहाँ मिट्टी में दो लकीरें खींचीं और बोले,“देखो, ये दो रेखाएँ हैं — दोनों अपने-अपने रास्ते पर सही हैं, जब तक एक-दूसरे को काटती नहीं। पर जब टकराती हैं, मिट जाती हैं।” कहकर वह फिर शांत हो गए।लोगों ने कुछ पल सोचा… और फिर बिना कुछ बोले दोनों परिवारों ने आपसी समझौता कर लिया। वक़्त बीतता गया। गाँव में जब भी कोई विवाद होता, लोग हरिनारायण के पास आते —जवाब की उम्मीद में।और हर बार वह जवाब नहीं देते थे… सिर्फ़ वक़्त देते थे। धीरे-धीरे सबने समझ लिया —कभी-कभी मौन ही सबसे गहरा उत्तर होता है।क्योंकि जो व्यक्ति शांत होता है, वह हर शब्द को तौलता है, हर भावना को समझता है। वह जानता है —शब्द चोट कर सकते हैं,पर खामोशी ठीक कर सकती है। सालों बाद, जब हरिनारायण नहीं रहे, तब भी उनका नाम गाँव में आदर से लिया जाता था।लोग कहते —“वो जवाब नहीं देते थे, मगर उनका वक़्त सब सिखा जाता था।” क्योंकि सच यही है —👉 शांत इंसान कम बोलता है मगर गहरा सोचता है।उसकी खामोशी में हज़ार सच छुपे होते हैं।वो जवाब नहीं देता, मगर वक़्त देता है —और वक़्त सबसे बड़ा जवाब बन जाता है। 🌿 शांत इंसान कम बोलता है मगर गहरा सोचता है, उसकी खामोशी में हज़ार सच छुपे होते हैं। वो जवाब नहीं देता, मगर वक्त देता है, और वक्त सबसे बड़ा जवाब बन जाता है।
- For Girlsशाम का समय था। आसमान पर हल्की धूप की परत धीरे-धीरे ढल रही थी। अस्पताल के उस छोटे से कमरे में, एक माँ अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर रही थी। मशीनों की बीपिंग आवाज़ उस सन्नाटे को तोड़ रही थी जो कई दिनों से उस कमरे में पसरा हुआ था। बेटी की आँखें बंद थीं, लेकिन साँसें चल रही थीं — बहुत धीमी, बहुत नाज़ुक। माँ की आँखों में नींद नहीं थी, बस थकान थी, और भीतर कहीं उम्मीद की आखिरी लौ जल रही थी। डॉक्टर ने कह दिया था — "अब दवाओं से ज़्यादा, उसे आपके स्नेह की ज़रूरत है।" उस दिन माँ ने कुछ अलग किया। उसने बेटी के माथे को चूमा, उसकी हथेली थामी और फिर धीरे से उसे अपनी बाँहों में भर लिया। वह आलिंगन शब्दों से परे था — न कोई संवाद, न कोई आँसू, बस एक मौन स्पर्श। और उसी पल, कुछ बदला। उस कमरे की हवा में एक अनकहा सुकून फैल गया। बेटी की पलकों ने हल्का-सा झटका खाया, जैसे किसी गहरी नींद से कोई पुकार उसे लौटा रही हो। वह आवाज़ दवाओं की नहीं थी। वह माँ की बाँहों की भाषा थी — वह भाषा जो दुनिया की हर बोली, हर लिपि से पुरानी है। आलिंगन का यह क्षण सिर्फ शरीरों का नहीं था; यह आत्माओं का संगम था। उस पल माँ ने सिर्फ अपनी बेटी को नहीं थामा, उसने जीवन को थामा — टूटे विश्वासों को, बिखरे साहस को, और अधूरी उम्मीदों को भी। आलिंगन सचमुच संसार की सबसे कोमल चिकित्सा है। उसमें न दवा है, न जादू, फिर भी वह हर घाव को भर देता है — चाहे वह मन का हो या आत्मा का। क्योंकि जब बाँहें किसी को थामती हैं, तो वे केवल शरीर को नहीं, उसके अस्तित्व को सहलाती हैं।वे कहती हैं — “मैं तुम्हारे साथ हूँ, चाहे दुनिया साथ न हो।” वे माफ़ कर देती हैं बिना कहे, समझा देती हैं बिना बोले। उस रात माँ ने अपनी बेटी को बस अपने पास सुला लिया।सुबह जब सूरज की पहली किरण खिड़की से भीतर आई, बेटी की आँखें खुल चुकी थीं। माँ की गोद में मुस्कुराहट की झिलमिल रोशनी थी। उसने धीमे से कहा —"माँ… तुम्हारे आलिंगन ने मुझे लौटा दिया।" माँ मुस्कुराई।उसे पता था — प्रेम कभी मरता नहीं, बस आलिंगन का इंतज़ार करता है। क्योंकि प्रेम भाषा नहीं जानता,वह बस हर स्पर्श में, हर साँस में, अपना अर्थ खुद लिख देता है… ❤️ एक मौन संवाद की कहानी संसार की सबसे कोमल,सबसे गहरी चिकित्सा है। यह वह उपचार है जो न दवाओं में मिलता है,न शब्दों में क्योंकि स्पर्श उस भावना का अनुवाद है जिसे शब्द कभी पूरा कह नहीं पाते। जब बाँहें किसी को थामती हैं, तो वे केवल शरीर नहीं, पूरे अस्तित्व को सहलाती हैं। आलिंगन में कोई भाषा नहीं होती,फिर भी उसमें सब कुछ कहा जाता है सुकून, स्वीकार, माफ़ी और प्रेम।यह वह क्षण है जहाँ समय रुक जाता है और दो धड़कनों के बीच एक मौन संवाद जन्म लेता है। और तब तुम कहते हो प्रेम भाषा नहीं जानता? अरे, प्रेम ही तो वह भाषा है जो बिना बोले समझ ली जाती है, जो हर स्पर्श में, हर साँस में,अपना अर्थ खुद लिख देती है... ❤️