रवि और नेहा की शादी को पाँच साल हो चुके थे। शुरू–शुरू में उनका रिश्ता बहुत खूबसूरत था। छोटी-छोटी नोकझोंक होती थी, पर कुछ ही देर में हंसी-मज़ाक में सब सुलझ जाता था। मगर धीरे-धीरे उनकी ज़िंदगी में एक आदत घर करने लगी—**कभी अपनी गलती न मानना** और हर बार अपनी ज़िम्मेदारी से भागकर एक-दूसरे पर या अपने घरवालों पर दोष डाल देना।
पहला झगड़ा –
एक दिन रवि दफ़्तर से देर से घर आया। नेहा नाराज़ हो गई और बोली—
“तुम्हें मेरी कोई फ़िक्र ही नहीं रहती, तुम्हारे ऑफिस का काम ही सबकुछ है।”
रवि ने शांति से समझाने के बजाय कहा—
“अगर मैं घरवालों को अच्छे से नहीं चला पाऊँ तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा? हमेशा मुझ पर शक करना छोड़ो।”
उस दिन अगर रवि बस एक शब्द कह देता—**“मुझे माफ़ करना, सच में देर हो गई”**, तो बात वहीं ख़त्म हो जाती। मगर उसने गलती मानने की बजाय अपनी सफ़ाई दी।
दूसरा झगड़ा –
कुछ महीनों बाद नेहा ने अपने मायके से किसी बात पर सलाह ली और रवि को बिना बताए निर्णय ले लिया। रवि को बुरा लगा और वह बोला—
“तुम्हें हर छोटी-बड़ी बात मायके में बतानी होती है, कभी खुद सोच लिया करो।”
नेहा ने गलती मानने की बजाय तुनककर कहा—
“अगर मैं मायके वालों से बात करती हूँ तो उसमें ग़लत क्या है? तुम तो हर बार अपनी माँ की ही सुनते हो।”
नेहा अगर उस वक़्त कह देती—**“हाँ, मुझसे ग़लती हुई, अगली बार ध्यान रखूँगी”**, तो शायद झगड़ा वहीं ख़त्म हो जाता। मगर उसने भी ज़िम्मेदारी नहीं ली।
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रिश्ते में दूरी –
धीरे-धीरे उनका रिश्ता शिकायतों का पुलिंदा बन गया।
* रवि सोचता, **“नेहा कभी अपनी गलती नहीं मानती”**।
* नेहा सोचती, **“रवि हमेशा मुझे ही दोष देता है”**।
और सबसे बड़ी समस्या यह थी कि दोनों अपने-अपने घरवालों को बीच में घसीट लेते। झगड़े सिर्फ़ पति-पत्नी तक सीमित नहीं रहे, बल्कि परिवार की इज़्ज़त का सवाल बन गए।
मोड़ –
एक दिन दोनों का झगड़ा इतना बढ़ा कि तलाक़ तक की नौबत आ गई। कोर्ट की तारीख़ भी तय हो गई।
कोर्ट में जज ने उनसे बस इतना पूछा—
“क्या तुम दोनों में से कोई एक भी यह मानने को तैयार है कि शादी में टूटने की वजह सिर्फ़ सामने वाला नहीं, बल्कि आप दोनों की ग़लतियाँ भी हैं?”
वहाँ कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। नेहा की आँखों में आँसू आ गए। उसने धीमे स्वर में कहा—
“हाँ, मुझसे भी ग़लतियाँ हुई हैं… मैं कभी अपनी गलती मानने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।”
रवि भी चौंक गया। फिर बोला—
“अगर नेहा ईमानदारी से यह मान सकती है, तो मैं क्यों नहीं? मैंने भी हमेशा अपनी बात साबित करने की कोशिश की… पर कभी यह नहीं सोचा कि गलती मेरी भी हो सकती है।”
नया सफ़र
उस दिन दोनों ने फैसला किया कि अब वे **अपनी गलती मानने से पीछे नहीं हटेंगे**, चाहे गलती छोटी हो या बड़ी।
धीरे-धीरे उन्होंने यह आदत बना ली—
जब भी झगड़ा हो, सबसे पहले सोचना—“कहीं गलती मेरी तो नहीं?”
घरवालों को बीच में लाने की बजाय, सीधे आपस में बात करना।
और सबसे अहम—“सॉरी” कहने की हिम्मत दिखाना।
#संदेश :
शादी टूटने का सबसे बड़ा कारण यह नहीं कि झगड़े होते हैं, बल्कि यह है कि पति-पत्नी अपनी गलती मानने को कमजोरी समझ लेते हैं।
असल में, गलती मानना कमजोरी नहीं, बल्कि रिश्ते को बचाने की सबसे बड़ी ताक़त है।
👉 याद रखिए,
“मैं ग़लत था”
“माफ़ करना”
“अगली बार सुधारूँगा”
ये तीन छोटे वाक्य, टूटते हुए रिश्तों को फिर से जोड़ सकते हैं।
