शाम का समय था। आसमान पर हल्की धूप की परत धीरे-धीरे ढल रही थी। अस्पताल के उस छोटे से कमरे में, एक माँ अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर रही थी। मशीनों की बीपिंग आवाज़ उस सन्नाटे को तोड़ रही थी जो कई दिनों से उस कमरे में पसरा हुआ था। बेटी की आँखें बंद थीं, लेकिन साँसें चल रही थीं — बहुत धीमी, बहुत नाज़ुक।
माँ की आँखों में नींद नहीं थी, बस थकान थी, और भीतर कहीं उम्मीद की आखिरी लौ जल रही थी। डॉक्टर ने कह दिया था — "अब दवाओं से ज़्यादा, उसे आपके स्नेह की ज़रूरत है।"
उस दिन माँ ने कुछ अलग किया। उसने बेटी के माथे को चूमा, उसकी हथेली थामी और फिर धीरे से उसे अपनी बाँहों में भर लिया। वह आलिंगन शब्दों से परे था — न कोई संवाद, न कोई आँसू, बस एक मौन स्पर्श।
और उसी पल, कुछ बदला।
उस कमरे की हवा में एक अनकहा सुकून फैल गया। बेटी की पलकों ने हल्का-सा झटका खाया, जैसे किसी गहरी नींद से कोई पुकार उसे लौटा रही हो।
वह आवाज़ दवाओं की नहीं थी। वह माँ की बाँहों की भाषा थी — वह भाषा जो दुनिया की हर बोली, हर लिपि से पुरानी है।
आलिंगन का यह क्षण सिर्फ शरीरों का नहीं था; यह आत्माओं का संगम था। उस पल माँ ने सिर्फ अपनी बेटी को नहीं थामा, उसने जीवन को थामा — टूटे विश्वासों को, बिखरे साहस को, और अधूरी उम्मीदों को भी।
आलिंगन सचमुच संसार की सबसे कोमल चिकित्सा है। उसमें न दवा है, न जादू, फिर भी वह हर घाव को भर देता है — चाहे वह मन का हो या आत्मा का।
क्योंकि जब बाँहें किसी को थामती हैं, तो वे केवल शरीर को नहीं, उसके अस्तित्व को सहलाती हैं।वे कहती हैं — “मैं तुम्हारे साथ हूँ, चाहे दुनिया साथ न हो।” वे माफ़ कर देती हैं बिना कहे, समझा देती हैं बिना बोले।
उस रात माँ ने अपनी बेटी को बस अपने पास सुला लिया।सुबह जब सूरज की पहली किरण खिड़की से भीतर आई, बेटी की आँखें खुल चुकी थीं। माँ की गोद में मुस्कुराहट की झिलमिल रोशनी थी।
उसने धीमे से कहा —"माँ… तुम्हारे आलिंगन ने मुझे लौटा दिया।"
माँ मुस्कुराई।उसे पता था — प्रेम कभी मरता नहीं, बस आलिंगन का इंतज़ार करता है।
क्योंकि प्रेम भाषा नहीं जानता,वह बस हर स्पर्श में, हर साँस में, अपना अर्थ खुद लिख देता है… ❤️
एक मौन संवाद की कहानी
संसार की सबसे कोमल,सबसे गहरी चिकित्सा है।
यह वह उपचार है जो न दवाओं में मिलता है,न शब्दों में क्योंकि स्पर्श उस भावना का अनुवाद है जिसे शब्द कभी पूरा कह नहीं पाते। जब बाँहें किसी को थामती हैं,
तो वे केवल शरीर नहीं, पूरे अस्तित्व को सहलाती हैं।
आलिंगन में कोई भाषा नहीं होती,फिर भी उसमें सब कुछ कहा जाता है सुकून, स्वीकार, माफ़ी और प्रेम।यह वह क्षण है जहाँ समय रुक जाता है और दो धड़कनों के बीच एक मौन संवाद जन्म लेता है।
और तब तुम कहते हो प्रेम भाषा नहीं जानता?
अरे, प्रेम ही तो वह भाषा है जो बिना बोले समझ ली जाती है, जो हर स्पर्श में, हर साँस में,अपना अर्थ खुद लिख देती है... ❤️
