बुंद सा जीवन है इंसान का
- ELA
- Jun 12
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"बुंद सा जीवन है इंसान का, लेकिन अहंकार सागर से भी बड़ा..."
इंसान का जीवन वास्तव में एक नाज़ुक और क्षणिक बूँद की तरह होता है — कब गिर जाए, कब सूख जाए, कोई नहीं जानता। फिर भी, हैरानी की बात यह है कि इतनी छोटी सी ज़िंदगी लेकर भी इंसान में अहंकार इतना होता है, जैसे वो अमर हो। वह भूल जाता है कि ना तो उसका समय स्थायी है, ना ही उसका अस्तित्व। जो जीवन एक पल में बदल सकता है, उसे लेकर घमंड पालना नासमझी है। सच्ची समझ तो तब है जब इंसान अपनी नश्वरता को स्वीकार कर विनम्रता से जीना सीखे, क्योंकि अंततः हर बूँद को सागर में मिल जाना है — फिर चाहे वो बूँद नम्र हो या अभिमानी।
बुंद सा जीवन है इंसान का.।
लेकिन अंहकार सागर से भी बड़ा..।।
Man's life is like a drop.
But his pride is bigger than the ocean.

बुंद सा जीवन है इंसान का.।
लेकिन अंहकार सागर से भी बड़ा..।।
ज़िंदगी पल भर की है, मगर घमंड अनंत का किया जाता है।
जिसे मिटना है एक दिन, वो खुद को अमर समझ बैठा है।
इंसान की उम्र रेत पर लिखी कहानी सी है, लेकिन उसका अहंकार पत्थर पर खुदा लगता है।
बूँद में सीमाएँ हैं, पर इंसान का अभिमान किनारे नहीं जानता।
जो खुद फानी है, वो खुद को खुदा समझ बैठा है।
क्षणभंगुर जीवन लेकर इंसान, स्थायित्व का घमंड पाले बैठा है।
जीवन छोटा है, मगर घमंड इतना बड़ा कि खुदा भी मुस्कुरा दे।
जिसका कल निश्चित नहीं, वो आज अहंकार में डूबा है।
बूँद तो आखिर सागर में मिलती है, मगर इंसान की बूँद भी खुद को सागर समझ बैठी है।
इंसान का जीवन धुएँ जैसा है, पर उसका अहंकार पहाड़ों जितना भारी।
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