क्यों मोहब्बत ढूँढ़ते हो इश्क़ की तहरीर में.
- ELA

- Jun 24
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"क्यों मोहब्बत ढूँढ़ते हो इश्क़ की तहरीर में... फ़र्क़ बहुत होता है पाज़ेब और ज़ंजीर में..."ये पंक्तियाँ मोहब्बत की गहराई और उसकी सही पहचान को बेहद खूबसूरती से बयां करती हैं। मोहब्बत कोई दस्तावेज़ नहीं जिसे तहरीर में ढूंढ़ा जाए, वो तो अहसासों की वो ख़ामोश जुबां है जो लफ़्ज़ों से परे होती है। लोग अक्सर इश्क़ के नाम पर रिश्तों में बंध जाते हैं, पर भूल जाते हैं कि बंधन और समर्पण में अंतर होता है। पाज़ेब सजावट होती है, वो खनकती है, मोहब्बत की तरह आज़ादी देती है; जबकि ज़ंजीर बंधन है — बोझिल, दर्दभरी और क़ैद करने वाली। इसलिए ज़रा सोचो, जो इश्क़ तुम्हें बाँध दे, तुम्हारी उड़ान रोक दे, क्या वो वाकई मोहब्बत है? मोहब्बत तो वो है जो उड़ान दे, न कि पर कतर दे।
क्यों मोहब्बत ढूँढ़ते हो इश्क़ की तहरीर में.|
फ़र्क़ बहुत होता है पाज़ेब औऱ जंज़ीर में..||
Why do you look for love in the writing of love. There is a lot of difference between anklets and chains.

क्यों मोहब्बत ढूँढ़ते हो इश्क़ की तहरीर में.|फ़र्क़ बहुत होता है पाज़ेब औऱ जंज़ीर में..||इश्क़ को लफ़्ज़ों में बाँधोगे तो वो तहरीर नहीं, तक़रीर बन जाएगा।
मोहब्बत वो है जो सजाए, जो कैद कर दे वो इश्क़ नहीं इश्तिहार है।
जहाँ इश्क़ में आज़ादी न हो, वो मोहब्बत नहीं सज़ा है।
हर चमकती चीज़ मोहब्बत नहीं होती, कुछ ज़ंजीरें भी सोने की होती हैं।
मोहब्बत पंख देती है, बंधन नहीं; पहचानो ज़रा, पाज़ेब है या ज़ंजीर?
इश्क़ में बंधन नहीं, अपनापन होता है; ज़ोर से नहीं, ज़िक्र से चलती है मोहब्बत।
जो मोहब्बत तहरीर मांगती है, शायद वो यकीन से दूर है।
मोहब्बत लिबास नहीं जो दिखाया जाए, वो तो एहसास है जो निभाया जाता है।💖



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