Word-Play वाले लोग कैसे होते हैं
- ELA

- Sep 16
- 3 min read
“Word-Play वाले लोग कैसे होते हैं, महिलाएँ कैसे फँसती हैं, और वे शिकार कैसे बनाते हैं?”
मानवीय संबंधों की दुनिया में “शब्दों का जादू करने वाले लोग” यानि वे लोग जो बातचीत को हथियार बनाकर भावनाओं को नियंत्रित करते हैं हमेशा से मौजूद रहे हैं। ये लोग दिखने में आकर्षक, समझदार और भावनात्मक रूप से उपलब्ध लगते हैं, पर भीतर से वे संबंधों को अपने फायदे, नियंत्रण या असुरक्षा छुपाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
महिलाएँ या कोई भी संवेदनशील व्यक्ति अक्सर इन लोगों के शब्दों के जाल में अनजाने में फँस जाते हैं।
1. Word-play वाले लोग कौन होते हैं? उनके मनोवैज्ञानिक गुण
(1) भावनात्मक बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल लेकिन सकारात्मक नहीं, चालाकी से
वे दूसरों की भावनाओं को बारीकी से पढ़ते हैं
किस बात से आप खुश होंगी
किससे आप दुखी होंगी
किस समय आप कमजोर महसूस करती हैं
किन शब्दों से आपको सबसे ज्यादा सुकून मिलता है
फिर वे इन्हीं बिंदुओं को सटीक तीर की तरह इस्तेमाल करते हैं।
(2) शब्दों में धुंध ताकि सच दिखे ही नहीं
वे ऐसी भाषा बोलते हैं जो स्पष्ट नहीं होती
“मैंने ऐसा कहा ही नहीं…”
“तुम गलत समझ रही हो…”
“मैं तो बस मज़ाक कर रहा था…”
“तुम ही सब ज़्यादा सोचती हो…”
यह धोखे की भाषा है, जिसे मनोविज्ञान में gaslighting कहा जाता है।
(3) शुरुआत में अत्यधिक मिठास
शुरुआत में वे
बहुत रिप्लाई करते हैं
तारीफें करते हैं
“कोई तुम्हें ऐसे नहीं समझ सकता” जैसा भाव देते हैं
इस स्टेज को “love bombing” कहा जाता है।
(4) सीमाओं का धीरे-धीरे अतिक्रमण
वे जानबूझकर छोटी-छोटी सीमाएँ तोड़ते हैं:
देर रात फोन
निजी बातें उकसाना
आपकी जिंदगी में दखल
“मैं बताऊँ क्या सही है” कहना
सीमाएँ टूटें, तो नियंत्रण आसान हो जाता है।
2. महिलाएँ कैसे फँस जाती हैं? (मनोवैज्ञानिक परतें)
(1) भावनात्मक खालीपन या समझे जाने की चाह
हर इंसान चाहता है कि कोई उसे ध्यान से सुने।
Word-play करने वाला व्यक्ति ये सुनने का नाटक करता है, जिससे सामने वाला स्वतः आकर्षित हो जाता है।
(2) तारीफों के प्रति संवेदनशीलता
हर व्यक्ति उस जगह जुड़ता है जहाँ उसे सराहना मिले।
चालाक लोग सबसे पहले आपकी उन गुणों की तारीफ करते हैं जिन्हें दुनिया अक्सर अनदेखा करती है।
(3) ‘मैं तुम्हें समझता हूँ’ सबसे खतरनाक वाक्य
ऐसे लोग सहानुभूति का अनुकृति संस्करण दिखाते हैं।
वास्तव में वे समझते नहीं वे अवलोकन करते हैं।
(4) आत्मग्लानि जगाने का खेल
वे आपको subtly दोषी महसूस कराते हैं:
“तुम बदल गई हो”
“मेरी feelings की तुम्हें परवाह नहीं”
“मैं इतना करता हूँ, तुम क्या करती हो?”
यह मनोवैज्ञानिक जाल आपको वापस उसी रिश्ते में खींच लाता है।
3. वे कैसे शिकार बनाते हैं? (नियंत्रण की रणनीतियाँ)
(1) अंतराल देकर लौट आना
वे 2–3 दिन गायब होते हैं और फिर अचानक वापस आ जाते हैं।
इससे आप भावनात्मक रूप से अस्थिर होती हैं जिसे “push-pull manipulation” कहा जाता है।
(2) हीरो की भूमिका निभाना
वो कभी-कभी “बचाने वाले” जैसा व्यवहार करते हैं
आपकी किसी समस्या में मदद
भावनात्मक सहारा
आपकी तकलीफ़ का विश्लेषण
पर यह सब कर्ज की तरह होता है जिसका इस्तेमाल बाद में मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में होता है।
(3) आपके ही शब्दों को पलट देना
आपने जो कहा, उसे twist कर देना उनका सबसे बड़ा हथियार है।
इससे आपकी self-confidence धीरे-धीरे टूटती है।
(4) आपको दूसरों से अलग करना
वे subtly यह भावना देते हैं कि
“तुम्हारे दोस्त तुम्हें नहीं समझते”
“मैं ही तुम्हें सही जानता हूँ”
इस तरह वे आपकी सामाजिक support system काट देते हैं।
4. ऐसे लोगों की पहचान कैसे करें? (मनोविज्ञान आधारित संकेत)
1. उनकी बातें मीठी होती हैं, पर व्यवहार असंगत
2. वे शुरुआत में बहुत ध्यान देते हैं, फिर धीरे-धीरे उदासीन होते जाते हैं
3. वे आपको गिल्ट महसूस कराते हैं
4. आपसे चीज़ें छुपाते हैं या आधी-अधूरी बताते हैं
5. आपसे आपकी सीमाओं से बाहर जाकर चीजें करवाते हैं
6. उनके साथ होने पर आप उलझाव महसूस करती हैं सुकून नहीं
5. अपने आप को कैसे सुरक्षित रखें?
(1) सीमाएँ स्पष्ट रखें
कब बात करनी है
क्या बातें साझा करनी हैं
आपको किस तरह का व्यवहार सहन नहीं
सीमा साफ़ हो, तो शिकार बनना मुश्किल होता है।
(2) शब्द नहीं व्यवहार पर ध्यान दें
जो आदमी शब्दों से चमकता है, उसका वास्तविक चरित्र कर्म में दिखता है।
(3) “अनिश्चितता” वाले रिश्तों से सावधान
जो आपको कभी खींचे, कभी दूर धकेले
वह व्यक्ति आपका नहीं, आपकी भावनाओं का मालिक बनना चाहता है।
(4) अपनी भावनात्मक जरूरतों को पहचानें
यदि आप अपने भीतर की खाली जगह पहचान लें, तो कोई भी उसे weapon की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकता।
6.यह प्रेम नहीं, मनोवैज्ञानिक नियंत्रण है
Word-play करने वाले लोग प्रेम का रूप धारण कर लेते हैं, लेकिन उनके शब्दों के पीछे प्रेम नहीं
सत्ता, नियंत्रण, असुरक्षा और लाभ छुपा होता है।
महिलाएँ (या कोई भी) इसलिए फँसते हैं क्योंकि हम सब इंसान हैं और इंसान होने का मतलब है भावनात्मक जरूरतें, अपेक्षाएँ और नाजुक पल।



Comments