शहर के एक कोने में रमेश नाम के व्यापारी और उनकी पत्नी सीता रोज़ मंदिर में कथा सुनने जाया करते थे। उनकी आदत थी कि हर शाम वे घंटों वहाँ बैठकर संतों का प्रवचन सुनते और घर लौट आते।
रमेश के घर में एक पिंजरे में मैना पली हुई थी। वह बड़ी चंचल थी और लोगों की बातें जल्दी सीख जाती थी। एक दिन जब रमेश मंदिर जाने की तैयारी कर रहे थे, तो मैना ने पूछा—
“मालिक! आप रोज़ कहाँ जाते हैं?”
रमेश हँसकर बोले—
“अरे! हम कथा-प्रवचन में जाते हैं, जहाँ संत लोग ज्ञान बाँटते हैं।”
मैना ने तुरंत कहा—
“तो मालिक, उनसे ज़रा यह भी पूछना कि मैं इस पिंजरे से आज़ाद कब होऊँगी।”
रमेश ने बात को हँसी में टाल दिया, लेकिन अगले दिन कथा खत्म होने पर उन्होंने सचमुच संत से यह प्रश्न पूछ ही लिया।
जैसे ही संत के कानों में यह बात पहुँची, उन्होंने गहरी साँस ली और अचानक मौन होकर आँखें बंद कर लीं। कुछ देर तक बैठे रहे और फिर ध्यान की अवस्था में ऐसे निढाल हो गए जैसे शरीर में प्राण ही न हों।
रमेश घबरा गए। उन्हें कुछ समझ नहीं आया और चुपचाप घर लौट आए।
घर आकर मैना ने उत्सुकता से पूछा—
“मालिक! मेरे सवाल का जवाब मिला?”
रमेश बोले—
“तू बड़ी अभागिन है! तेरी बात सुनते ही संत तो ऐसे मौन हो गए जैसे बेहोश हो गए हों। कुछ नहीं बोले।”
मैना हल्के से मुस्कराई और बोली—
“बस मालिक, अब मैं सब समझ गई।”
अगली सुबह जब रमेश पूजा के लिए निकले तो देखा कि मैना पिंजरे में एकदम चुपचाप पड़ी हुई है। उसने पंख भी नहीं हिलाए। रमेश घबरा गए—
“अरे! ये तो मर गई।”
उन्होंने जल्दी से पिंजरा खोला और मैना को बाहर निकाला। मगर तभी वह झट से उड़ान भरकर आसमान में चली गई। रमेश हैरान रह गए।
उसी दिन वे फिर कथा में पहुँचे और संत को सारी बात बताई।
संत मुस्कराकर बोले—
“व्यापारी जी! देखो, तुम इतने वर्षों से कथा सुन रहे हो, लेकिन अभी तक मोह-माया के पिंजरे से बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा पाए।
और उस मैना को देखो—वह बिना कथा सुने, सिर्फ़ मेरे मौन का संकेत समझ गई और उसी क्षण उसने बंधन तोड़ने का तरीका खोज लिया।
सीख :--
हममें से ज़्यादातर लोग सत्संग या कथा में जाते हैं, लेकिन सिर्फ़ वही सुनते हैं जो हमारे मन और स्वार्थ को अच्छा लगे। असल में ज्ञान तभी सार्थक है जब हम उसे जीवन में उतारें।
सत्य को स्वीकार करने और झूठ, अहंकार, और मोह से मुक्त होने का साहस ही हमें असली आज़ादी देता है।
डिस्क्लेमर :--
इस कहानी का उद्देश्य केवल जीवन मूल्यों और प्रेरणा को साझा करना है, किसी भी व्यक्ति, संस्था या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है।