"सच्चा प्यार आत्माओं का मामला होता है, शरीरों का नहीं। यही कारण है कि जो भावनाएँ केवल भौतिक रूपों पर निर्भर होती हैं, वे क्षणिक होती हैं।
झुर्रियाँ आ जाती हैं, थोड़ा वजन बढ़ या घट जाता है, और फिर वह भावना नहीं रहती।
यह प्यार नहीं होता।
यह तो केवल बाहरी आकर्षण पर आधारित एक अस्थायी चुम्बकीय खिंचाव होता है, जिसमें कोई गहराई या मजबूती नहीं होती।
लेकिन 'सच्चे प्यार' के लिए न कोई रवैया मायने रखता है, न उम्र और न ही रूप। यह आत्मा से आत्मा का संबंध होता है, वह ऊर्जा का प्रेम होता है जो किसी व्यक्ति से निकलती है, क्योंकि यह ऊर्जा उस व्यक्ति की आंतरिक सच्चाई का सार होती है।
ऐसे प्रेम के लिए दूरी या समय कोई मायने नहीं रखते।
यह प्रेम मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होता।"
– पेद्रो लांजागोर्ता