नई नई शादी होकर घर में आयी थी मैं। ‘एम ए बी एड है बहू मेरी’, कहते हुए मेरे ससुर साहब तो सबसे मेरी तारीफ़ करते, लेकिन घर में मेरी सासुमाँ हर समय बुराई करतीं, ‘इसे ये नहीं आता, इसे वो नहीं आता’।
ससुर जी चुप रह जाते, और मैं खुद को समझाती, ‘अगली बार और ध्यान से करूँगी।‘
होली आने वाली थी, तो तैयारियाँ चल रही थीं— कचौड़ियाँ , नमकीन, गुज़िया। गुज़िया तो मैंने माँ के साथ खूब बनवाईं थी, लेकिन खस्ता कचौड़ियाँ , और नमकीन वगैरहा तो हम बाजार से ही लेते थे। ससुराल में बाजारी सामान बहुत ही कम घर लाया जाता था।
कचौड़ियाँ बेलने के लिए मुझसे ही कहा, सासुमाँ ने। मैं बड़े उत्साह से बेलने बैठी।
“मैंने कचौड़ियाँ बेलने के लिए कहा है या पूरियाँ?” दो कचौड़ियाँ बेल कर रखते ही सासुमाँ ने अत्यंत कर्कश स्वर में सबको सुनाया हो जैसे।
“अरे तो बता दो न कि खस्ता कचौड़ियाँ छोटी बेली जाती हैं,” अखबार पढ़ते ससुरजी उठ आए।
“हर काम हम ही सिखाएंगे क्या? कुछ इसकी माँ ने नहीं सिखाया?” सासुमाँ की तानाशाही बरक़रार रही।
मेरी आँखों में आँसू भर आए। घर होता तो मैं रसोई छोड़ कर अपने कमरे में भाग जाती और फिर हर काम की छुट्टी। लेकिन, बहती आँखें लिए मैंने कचौड़ियों का आकार कम रखते हुए बेला और सासुमाँ का बनाया मसाला भर कर सेंकीं। जब काफी कचौड़ियाँ बन गईं तो ससुरजी स्वाद चखने के लिए आ गये। दरअसल उठती खुश्बू से उनसे रुका ही नहीं जा रहा था।
‘”देखा बस इतनी सी तो बात थी। कितनी बढ़िया कचौड़ियाँ बनी हैं। बहू कितनी समझदार है, एक ही बार में सब समझ लेती है,” ससुरजी के चेहरे पर स्वाद का आनंद फैला था।
“हुहं…” करके सासुमाँ रसोई में आ गईं और एक कचौड़ी खाते हुए बोलीं, “थोड़ी कम सेंको, इन्हें कुछ नहीं पता,” और मैंने सिंकाई थोड़ी कम कर दी।
इस तरह बाद की थोड़ी सी कचौड़ियाँ कम सिकीं हुई बनी।
बाद में जब मैंने एक अधिक सिकी खाकर देखी तो वह बहुत मज़ेदार थी। उसी समय पतिदेव घर आए तो मैंने उन्हें कम सिकी कचौड़ी दी। उन्हें कुछ भी मज़ा न आया और कम सिकीं कचौड़ियाँ किसी ने भी स्वाद से नहीं खाईं। इस बात को देवरजी ने कहा तो सासुमाँ ने बात मुझ पर ही डाल दी कि तेरी भाभी ने बनाईं हैं। खैर, मैं चुप ही रही और देवरजी ने छाँट कर बढ़िया सिकीं कचौड़ियाँ खाईं।
थोड़ी देर बाद जब मैंने रसोई में झांका तो देखा कि सासुमाँ कचौड़ियों में कुछ छाँटने की कोशिश कर रही थीं। ये देख कर मेरे होठों पर मुस्कुराहट खेलने लगी क्योंकि, मैंने पहले ही कम सिकीं कचौरियों को एक तरफ रख दिया था, होली वाले दिन गली में मस्ती करते भंगेड़ियों को खिलाने के लिए। भाँग के नशे में कचौड़ी के स्वाद का होश किसे रहेगा?
—T🌈T💞 (तरन्नुम तन्हा)