ज़िंदगी कोई खेल नहीं है और न ही कोई रिश्ता। बचपना अब छोड़ दीजिए, क्योंकि रिश्ते अब सिर्फ आकर्षण या मौज-मस्ती के लिए नहीं होते। ये एक वादा होते हैं, एक ज़िम्मेदारी, जिसे निभाना होता है – हर दिन, हर पल।
रिश्ते की शुरुआत में जो उत्साह होता है, वही समय के साथ परिपक्वता में बदलता है। लेकिन अफ़सोस, कई लोग जैसे ही किसी "बेहतर" व्यक्ति से मिलते हैं, पुराने रिश्ते से ऊबने लगते हैं। पर क्या यही सच्चा प्यार है? नहीं। प्यार किसी नए चेहरे से मोहित हो जाना नहीं होता, बल्कि उसी एक इंसान को रोज़ाना नए तरीके से चुनना होता है।
जब आपका पार्टनर आपको कुछ कहता है, आपको टोकता है, तो ये उसकी हक़दारी है। वो अब आपके जीवन का हिस्सा है। आपके हर सही-ग़लत पर उसे बोलने का हक है। और अगर आपने कभी धोखा दिया, तो ये मत कहिए कि 'जानबूझकर नहीं किया' या 'अब पहले जैसी फीलिंग नहीं रही'। धोखा देना एक ग़लती नहीं, एक निर्णय होता है। और ये निर्णय सामने वाले को सिर्फ दुख नहीं देता, बल्कि अंदर से तोड़ देता है।
किसी को सच्चे मन से चाहना आसान नहीं होता, खासकर तब जब वो पहले से टूटा हुआ हो। अगर आप किसी ऐसी लड़की से रिश्ता बना रहे हैं जो पहले से जख्मी है, तो समझिए – वो हर बार खुद से लड़ रही होती है। उसके मन में डर है, असुरक्षा है, और बहुत सी अधूरी बातें हैं। वो पूछेगी – “क्या तुम अब भी मुझे चाहते हो?” और तब आपको सिर्फ जवाब नहीं देना होगा, बल्कि उसे हर बार महसूस कराना होगा कि आप वहीं हैं, उसके साथ।
उसका “थोड़ा ज़्यादा” होना कोई बोझ नहीं, वो तो उसकी सच्चाई है। और अगर आप उसके साथ पूरी ईमानदारी से खड़े रहते हैं, तो बदले में आपको ऐसा प्यार मिलेगा जो सबसे सच्चा, सबसे गहरा होगा। प्यार तब नहीं मापा जाता जब सब कुछ आसान हो; असली प्यार तब साबित होता है जब हालात मुश्किल हों और फिर भी आप साथ ना छोड़ें।
जीवन में यही बात बच्चों के साथ भी लागू होती है। जैसा आप उन्हें देंगे, वही वो बनेंगे। अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा दयालु हो, तो पहले खुद दयालु बनिए। अगर आप चाहते हैं कि वो खुद को समझे और पसंद करे, तो उसे प्यार और सकारात्मकता से भर दीजिए। आपके कहे गए हर शब्द, हर प्रतिक्रिया, उसके भीतर की आवाज़ बन जाती है। जैसा आप उसे देखेंगे, वैसा ही वो खुद को देखेगा। और जैसा आप उसे समझेंगे, वैसा ही वो खुद को समझेगा।
रिश्ते, चाहे साथी के हों या बच्चों के, सिर्फ मौकों पर निभाने की चीज़ नहीं होते। वो रोज़ की मेहनत और सच्चे इरादों की मांग करते हैं। सच्चा रिश्ता तब बनता है जब आप हर हाल में एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं, बिना शर्तों के, बिना किसी स्वार्थ के। क्योंकि जब दिल से निभाए जाते हैं वादे, तभी मिलती है ज़िंदगी में वो गहराई, वो शांति, जो हर इंसान ढूंढता है।
और याद रखिए –
कभी-कभी "माफ करना" भी काफी नहीं होता, जब दिल पूरी तरह टूट चुका हो।
इसलिए धोखा मत दीजिए, भरोसे की कद्र कीजिए।
क्योंकि जिसने आप पर भरोसा किया है, उसने अपना दिल आपके हाथों में सौंपा है।
उसे संभालिए... टूटने मत दीजिए।
