माचिस किसी दूसरी चीज
को जलने से पहले खुद को जलाती है
गुस्सा भी एक माचिस की तरह है
यह दुसरो को बर्बाद करने से पहले
खुद को बर्बाद करता है!💯
एक छोटे से गाँव में मनोज नाम का आदमी रहता था। उसने ज़िंदगी में बहुत कुछ देखा था — बचपन की मुश्किलें, काम के तनाव, और रिश्तों में आई ठोकरें। मनोज का स्वभाव तेज़ था; छोटी-छोटी बातों पर उसका गुस्सा उठ आता। लोग उससे दूर रहने लगे थे। उसके घर में भी अक्सर चुप्पी छाई रहती — बातें झड़तीं, दरवाज़े जोर से बंद होते और रात में नींद में उतरी चुभन बनी रहती।
एक दिन गाँव के मंदिर के पास एक पुराना दुकानदार बैठा अपनी माचिस बेच रहा था। उसके पास एक छोटा-सा डब्बा था, जिस पर तस्वीर और कुछ शब्द लिखे थे — “माचिस काम के लिए, पर संभलकर”। मनोज वहाँ से गुज़रते हुए थोड़ा ठहरा। उसने दुकानदार से पूछा, “माचिस क्या होती है?” दुकानदार मुस्कुरा कर बोला, “माचिस? एक छोटी सी चीज़, पर आग जगाने की ताक़त रखती है। पर ध्यान रखो — माचिस पहले खुद जलती है, फिर दूसरे को जलाती है।”
ये बात मनोज के दिल में बैठ गयी। उस रात उसने सोचा — क्या मेरा गुस्सा भी माचिस की तरह नहीं है? वह आगे बढ़ने से पहले खुद को जला देता है — अपने रिश्ते, अपनी शांति, अपनी सेहत।
पहला हादसा
कुछ हफ्तों बाद ऑफिस में हुई एक छोटी गलती पर मनोज का गुस्सा फिर उभर आया। उसने अपनी टीम के सामने ग़ुस्से में इतनी तीखी बातें कर दीं कि एक सहयोगी रोते हुए चला गया। अंत में न केवल टीम का माहौल ख़राब हुआ बल्कि मनोज का भी दिल भारी हो गया। उसे नींद नहीं आई; पेट में दर्द हुआ; शाम को उसने देखा कि उसकी पत्नी भी चुपचाप रो रही है — तीसरी बार यह घटना घर में नफ़रत सी पैदा कर चुकी थी।
उसी रात वह वापस दुकान पर गया और दुकानदार से कहा, “तुम्हारी माचिस वाली बात मुझे समझ आई। मैं खुद को जलाते-जलाते सब कुछ जला रहा हूँ। मुझे बदलना होगा।” दुकानदार ने कहा, “पहला कदम समझना ही बड़ा कदम है। अब अगला कदम है — और कुछ करना।”
बदलने की राह
मनोज ने ठाना कि वह गुस्से को जलने से पहले बुझाना सीखेगा। उसने कुछ बातें अपनाईं:
साँस लेना सीखा — गुस्सा आने पर वह गहरी साँसें लेता, दस तक गिनता और तब बोलता।
वक़्त लेना सीखा — किसी भी निर्णय या तीखी बात से पहले ‘पाँच मिनट’ का ब्रेक लिया। यह छोटा-सा ब्रेक चमत्कार कर देता।
अभिव्यक्ति बदलना सीखा — अब वह ग़ुस्से में चीखने की बजाय अपनी भावनाएँ शांति से बताता — “मुझे इस बात से दुख हुआ…”।
माफी माँगना सीखा — जब उसने गलती की, तुरंत माफ़ी माँगी। माफी में गुमान नहीं होता, बल्कि रिश्तों की मरम्मत होती है।
स्वास्थ्य पर ध्यान दिया — दिनभर की थकान और भूख भी गुस्सा बढ़ाती है। उसने व्यायाम और संतुलित आहार शुरू किया।
धीरे-धीरे घर का माहौल बदलने लगा। पहले जहाँ लोग उससे डरते थे, अब वे उसके पास बैठकर बातें करने लगे। उसकी पत्नी ने कहा, “तुम्हारी आँखों में फिर वही शांति दिखने लगी है।” बच्चे फिर से अपने पिता के बल में सिमटने लगे।
एक बड़ा मोड़
एक दिन गाँव में बड़ा तूफ़ान आया। बगीचे के पेड़ उखड़ गए, छत कुछ जगहों पर टूट गयी। मनोज ने देखा कि एक पडोसी का वृद्ध पिता घायल हो गया है। पहले वाले मनोज की तरह अगर वह चीखता, अफरा-तफरी मचाता तो और नुकसान होता। पर मनोज ने गहरी साँस ली, संयम रखा और लोगों को व्यवस्थित करके मदद पहुँचा दी। वृद्ध की जान बच गयी। सबने देखा — वही आदमी जो पहले छोटी-छोटी बातों पर आग लगा देता था, आज चोट और मेहनत में भी शांत रहा और बड़ा काम कर गया।
उसी शाम दुकानदार ने कहा, “देखा? तुम्हारी माचिस अब जलाने की बजाय रोशनी दे रही है। गुस्सा अगर संभाला जाए तो वह ताकत बन सकता है, वरना सिर्फ जलकर सब कुछ राख कर देता है।”
आख़िरी बात — माचिस से सीख
माचिस की तरह गुस्सा भी छोटा है, पर असर बड़ा। वह पहले खुद को झुलसा देता है — नींद, सेहत, रिश्ते — और फिर दूसरों को भी जला देता है।
वो लोग जीतते हैं जो गुस्से को समझते हैं, उसे नियंत्रित करते हैं, और उसे ऊर्जा में बदल دیتے हैं। गुस्सा हमेशा नकारात्मक नहीं होता; अगर उसे सही दिशा दी जाए तो वह प्रेरणा बन सकता है।
बदलाव एक दिन में नहीं आता, पर प्रत्येक साँस, प्रत्येक पाँच मिनट का ब्रेक, हर माफी और हर शांत उत्तर से छवि बदलती है।
निष्कर्ष
गुस्सा वही माचिस है — अगर तुम उसे हाथ में लेकर बिना सोचे-समझे घसीटो तो पहले तुम खुद जलोगे और फिर जो पास होगा उसे भी जला दोगे। पर अगर तुम सीखो कि माचिस को कहाँ और कब इस्तेमाल करना है — या उसे थैली में छोड़ देना है — तो तुम अपने और अपने आस-पास के लोगों के लिए रोशनी बन सकते हो, आग नहीं।
आज से अगर कभी गुस्सा आए, तो एक गहरी साँस लो, दस तक गिनो, और सोचो — क्या मैं माचिस जला कर कुछ हासिल कर लूँगा, या उसे बुझाकर कोई बेहतर काम कर सकूँगा? 💯
