गाँव के किनारे एक बूढ़ा आदमी रहता था — नाम था हरिनारायण।उसके चेहरे पर सैकड़ों अनुभवों की लकीरें थीं, लेकिन बोलता बहुत कम था।लोग उसे “मौन बाबा” कहते थे, क्योंकि वह ज़्यादा बातें नहीं करता था।
वो सुबह-सुबह उठकर नदी किनारे बैठ जाता, दूर तक पानी की लहरों को निहारता और मिट्टी में अपनी उँगलियों से कुछ रेखाएँ बनाता।लोग कई बार उससे पूछते —“बाबा, आप इतने शांत क्यों रहते हैं? कुछ बोलते क्यों नहीं?”वो बस मुस्कुरा देता और कहता,“बोलने से ज़्यादा सुनने में सच्चाई मिलती है बेटा।”
गाँव के लोग उसे अजीब समझते थे। कुछ कहते, “यह आदमी तो पागल है, कभी गुस्सा नहीं करता, किसी बात का जवाब नहीं देता।”पर जो उसे समझता था, वो जानता था कि उसकी खामोशी में गहराई है — जैसे शांत झील के नीचे अनकहे रहस्य।
एक दिन गाँव में एक झगड़ा हुआ।दो परिवार एक ज़मीन को लेकर भिड़ गए। दोनों पक्ष हरिनारायण के पास पहुँचे।“बाबा, फैसला कीजिए! किसकी ज़मीन है ये?”हरिनारायण ने बस उन्हें देखा। कुछ नहीं बोला।दोनों पक्ष झल्ला गए — “आप कुछ कहते क्यों नहीं?”
वो बस उठे, दोनों को साथ लेकर नदी किनारे गए।वहाँ मिट्टी में दो लकीरें खींचीं और बोले,“देखो, ये दो रेखाएँ हैं — दोनों अपने-अपने रास्ते पर सही हैं, जब तक एक-दूसरे को काटती नहीं। पर जब टकराती हैं, मिट जाती हैं।”
कहकर वह फिर शांत हो गए।लोगों ने कुछ पल सोचा… और फिर बिना कुछ बोले दोनों परिवारों ने आपसी समझौता कर लिया।
वक़्त बीतता गया। गाँव में जब भी कोई विवाद होता, लोग हरिनारायण के पास आते —जवाब की उम्मीद में।और हर बार वह जवाब नहीं देते थे… सिर्फ़ वक़्त देते थे।
धीरे-धीरे सबने समझ लिया —कभी-कभी मौन ही सबसे गहरा उत्तर होता है।क्योंकि जो व्यक्ति शांत होता है, वह हर शब्द को तौलता है, हर भावना को समझता है।
वह जानता है —शब्द चोट कर सकते हैं,पर खामोशी ठीक कर सकती है।
सालों बाद, जब हरिनारायण नहीं रहे, तब भी उनका नाम गाँव में आदर से लिया जाता था।लोग कहते —“वो जवाब नहीं देते थे, मगर उनका वक़्त सब सिखा जाता था।”
क्योंकि सच यही है —👉 शांत इंसान कम बोलता है मगर गहरा सोचता है।उसकी खामोशी में हज़ार सच छुपे होते हैं।वो जवाब नहीं देता, मगर वक़्त देता है —और वक़्त सबसे बड़ा जवाब बन जाता है। 🌿
शांत इंसान कम बोलता है मगर गहरा सोचता है,
उसकी खामोशी में हज़ार सच छुपे होते हैं।
वो जवाब नहीं देता, मगर वक्त देता है,
और वक्त सबसे बड़ा जवाब बन जाता है।
