बेटा जब पत्नी का साथ देता है
एक मध्यमवर्गीय परिवार था—पिता, माँ, बड़ा बेटा अमित, बहू सोनाली और छोटा बेटा रोहित। परिवार देखने में बहुत संस्कारी और खुशहाल लगता था, लेकिन घर की दीवारों के भीतर एक अनकही कड़वाहट धीरे-धीरे पनप रही थी।
शुरुआत –
सोनाली पढ़ी-लिखी, समझदार और सीधे स्वभाव की लड़की थी। शादी के बाद वह पूरे मन से घर के कामों में लग गई। सास-ससुर की सेवा करती, घर के नियमों का पालन करती और कोशिश करती कि किसी को शिकायत का मौका न मिले।
लेकिन फिर भी अक्सर सास और मोहल्ले की औरतों के बीच बातें होतीं—“आजकल की बहुएँ ज़ुबान बहुत चलाती हैं।”“हमारे ज़माने में बहुएँ सिर झुकाकर रहती थीं।”
सोनाली भले चुप रहती, लेकिन उसकी मेहनत को कभी सही मायनों में सराहा नहीं गया।
पहला मोड़ –
एक दिन रसोई में कुछ बनाते समय गैस जलाने में गलती हो गई और खाना थोड़ा जल गया। सास ने तुरंत टोका—“देखा, आजकल की लड़कियाँ घर सँभाल ही नहीं सकतीं। न जाने हमारे बेटे का क्या हाल होगा।”
अमित वहीं बैठा था। उसने हिम्मत करके कहा—“माँ, गलती तो किसी से भी हो सकती है। सोनाली रोज़ इतने अच्छे से खाना बनाती है, और आप सिर्फ़ एक दिन की गलती पर उसे जज कर रही हैं।”
उस दिन पहली बार अमित ने अपनी पत्नी का साथ दिया।
प्रतिक्रिया –
लेकिन बात वहीं खत्म नहीं हुई। शाम को मोहल्ले की एक आंटी आईं और माँ से हँसते हुए बोलीं—“बहू की गलती पर तो बेटा ही बोल पड़ा, अब तो बेटा भी हाथ से निकल गया।”
माँ ने भी दुखी होकर कहा—“हाँ, अब तो बेटा अपनी बीवी का ही हो गया है, हमें तो बस ताने ही मिलते हैं।”
और तभी से घर में यह फुसफुसाहट शुरू हो गई—👉 “बहू तो ठीक है, पर बेटा भी बदल गया है।”👉 “अब तो बेटा माँ-बाप को छोड़कर बीवी का गुलाम बन गया है।”
दूसरा मोड़ –
समय बीतता गया। जब भी अमित पत्नी का साथ देता, लोग उसकी पीठ पीछे बातें करने लगे।
“देखा, बहू के चक्कर में बेटा अपनी माँ की भी नहीं सुनता।”
“बीवी से इतना प्यार है कि माँ-बाप की इज़्ज़त भूल गया।”
ये बातें सुनकर अमित को दुःख होता, पर वह जानता था कि अगर सही का साथ न दूँ, तो पत्नी का हक़ दब जाएगा और उसका आत्मविश्वास टूट जाएगा।
एक दिन उसने अपनी माँ से कहा—“माँ, आप सोचती हैं कि जब मैं सोनाली का साथ देता हूँ तो मैं आपका विरोध करता हूँ। पर सच्चाई यह है कि मैं सिर्फ़ न्याय करता हूँ। अगर मेरी पत्नी ग़लत है तो मैं उसे भी समझाऊँगा, और अगर वह सही है तो मैं चुप नहीं रह सकता। सच का साथ देना कोई ग़लती नहीं होती।”
जागृति –
उस दिन माँ पहली बार सोच में पड़ गईं।उन्हें याद आया कि शादी के शुरुआती दिनों में उन्होंने भी अपने पति से यही चाहा था—कि जब ससुराल वाले ताने दें तो पति उनका साथ दे।फिर क्यों आज बहू के मामले में उन्हें बुरा लग रहा था?
धीरे-धीरे माँ का नज़रिया बदलने लगा। अब उन्हें एहसास हुआ कि बेटे का पत्नी का साथ देना बुराई नहीं है, बल्कि यह उसकी जिम्मेदारी और परवरिश का सबूत है।
नया वातावरण –
अब घर का माहौल बदल गया।
सास ने बहू की अच्छाइयों को देखना शुरू किया।
मोहल्ले की बातें अब उनके लिए उतनी मायने नहीं रखतीं।
और सबसे अहम—अमित को अब अपनी पीठ पीछे बुराई की चिंता नहीं रही।
संदेश :
जब कोई बेटा अपनी पत्नी का साथ देता है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह माँ-बाप को भूल गया है।बल्कि इसका अर्थ है कि वह अपने परिवार में न्याय, सम्मान और संतुलन बनाए रखना जानता है।
👉 याद रखिए—
सही का साथ देना कभी ग़लत नहीं होता।
बेटे की परवरिश तभी पूरी मानी जाती है जब वह अपनी पत्नी को वही इज़्ज़त दे, जो वह अपनी माँ को देता आया है।
और सच्चाई यह है कि पीठ पीछे बहू की बुराई जितनी होती है, उतनी ही बेटे की भी होती है—क्योंकि उसने इंसानियत का साथ दिया।
पीठ पीछे से सिर्फ बहु की नहीं, खुद के बेटे की भी बुराई होती हैं ...!!
जब वह अपनी पत्नी का साथ दे
