समाज में स्त्री और पुरुष की ऊर्जा केवल शरीर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गूढ़ और गहरी आंतरिक चेतना का प्रतिनिधित्व करती है। स्त्रीत्व एक कोमल, ग्रहणशील, रचनात्मक और सहज ऊर्जा है जो स्वाभाविक रूप से प्रेम, सौंदर्य और समर्पण की ओर आकर्षित होती है। लेकिन यह समर्पण तभी संभव है जब सामने की ऊर्जा—अर्थात पुरुषत्व—स्वस्थ, जागरूक और दिव्य हो।
घायल पुरुषत्व और स्त्री की प्रतिक्रिया
जब पुरुष स्त्री की आलोचना करता है, उसे नीचा दिखाता है, अपमान करता है, या उसे नियंत्रित और चोट पहुंचाने की कोशिश करता है, तो स्त्री का अंतर्मन स्वयं की रक्षा के लिए तत्पर हो जाता है। वह अब कोमल और समर्पणशील नहीं रहती, बल्कि उसके भीतर का 'आंतरिक पुरुष' जाग उठता है—जो उसकी रक्षा करता है, सीमाएँ खींचता है और आक्रामकता के विरुद्ध खड़ा हो जाता है।
इस स्थिति में स्त्री प्रेम नहीं कर सकती, समर्पण नहीं कर सकती—क्योंकि उसकी आत्मा को खतरे का अनुभव होता है। यह चेतावनी है कि सामने की ऊर्जा अभी भी अधूरी है, घायल है, और उसे पहले स्वयं को चंगा करना आवश्यक है।
दिव्य पुरुषत्व और स्त्री का स्वाभाविक समर्पण
विपरीत इसके, जब पुरुष सत्य में रचा-बसा होता है—जब वह स्त्री के प्रति समर्पित, सम्मानशील, सहारा देने वाला, और उसकी रक्षा करने वाला होता है—तो स्त्री का अंतर्मन खुलता है। जब वह देखती है कि पुरुष के भीतर सीमाएँ हैं, ईमानदारी है, दिशा है, उत्तरदायित्व है, और सबसे महत्वपूर्ण—विनम्रता है, तब वह सहज ही उसकी ऊर्जा में स्वयं को सुरक्षित महसूस करती है।
यही सुरक्षा, यही भावनात्मक स्पेस स्त्री को आत्मा से समर्पण करने का अवसर देती है। वह न केवल अपने शरीर से, बल्कि मन, हृदय और आत्मा से उस पुरुष के साथ एकत्व का अनुभव करती है।
यह है healed polarities का नृत्य
जब स्त्री और पुरुष दोनों अपनी-अपनी आंतरिक ऊर्जा को चंगा करते हैं—स्त्री अपनी शक्ति को और पुरुष अपने प्रेम को पहचानता है—तो दोनों के बीच एक दिव्य नृत्य आरंभ होता है। यह शक्ति और समर्पण का नृत्य है, जहां नियंत्रण नहीं, बल्कि सहयोग होता है; भय नहीं, बल्कि विश्वास होता है।
समर्पण केवल प्रेम को ही होता है
यह समझना आवश्यक है कि स्त्री का समर्पण कमजोरी नहीं, बल्कि प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति है। वह किसी भी पुरुष को नहीं, बल्कि 'प्रेम को' समर्पित होती है—एक ऐसी ऊर्जा को जो उसे संपूर्ण, स्वतंत्र और सुरक्षित अनुभव कराती है।