ज़िक्र से नहीं.!फ़िक्र से पता चलता है, कि अपना कौन है..!!
- ELA
- 3 दिन पहले
- 1 मिनट पठन
दुनिया में बहुत लोग हैं जो हमारे सामने बैठकर बातें तो खूब करते हैं, हमारा ज़िक्र महफ़िलों में भी होता है, लेकिन जब हालात मुश्किल हो, तो वही चेहरे ग़ायब नज़र आते हैं। असल अपने वो नहीं जो हर बार नाम लेते हैं, बल्कि वो हैं जो बिना कहे हाल जान लेते हैं, जो दूर रहकर भी आपकी फ़िक्र करते हैं। ज़िक्र तो दिखावा भी हो सकता है, लेकिन फ़िक्र... वो तो दिल की सच्चाई से निकलती है। इसलिए जब भी अपने और पराए में फर्क समझ न आए, तो ये मत देखो कौन तुम्हारा नाम ले रहा है — देखो कौन तुम्हारे लिए रात को चैन से सो नहीं पा रहा।
ज़िक्र से नहीं.!
फ़िक्र से पता चलता है,
कि अपना कौन है..!!

"जो हर रोज़ नाम ले, ज़रूरी नहीं कि वो अपना हो,जो चुपचाप दुआ करे, वही असली रिश्ता होता है।"
"ज़िक्र तो सभी कर लेते हैं वक्त बिताने के लिए,फ़िक्र वही करता है जो दिल से जुड़ा होता है।"
"अपनों की पहचान आवाज़ से नहीं,चुपचाप किए गए एहसास से होती है।"
"कौन कितना याद करता है, ये मायने नहीं रखता,कौन कितनी फ़िक्र करता है, बस यही काफ़ी है।"
"ज़ुबान से किया गया ज़िक्र आसान होता है,दिल से की गई फ़िक्र बहुत मुश्किल।"
"हर कोई कहता है – 'हम साथ हैं',मगर फ़िक्र करने वाले कुछ ही होते हैं।"
"जो बिना दिखाए साथ निभाए,वही रिश्ता सबसे सच्चा होता है।"
Comments