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एक विषैले व्यक्ति

  • लेखक की तस्वीर: ELA
    ELA
  • 5 दिन पहले
  • 3 मिनट पठन

न तो साथ चाहिए, न तुम्हें आज़ाद छोड़ेंगे": एक विषैले व्यक्ति"

हम सभी ने जीवन में कभी न कभी ऐसे लोगों का सामना किया है जो न तो हमारे साथ एक सच्चा और स्वस्थ रिश्ता रखना चाहते हैं, और न ही हमें पूरी तरह आज़ाद छोड़ना चाहते हैं। ऐसे लोग अपने नियंत्रण, हस्तक्षेप और मानसिक चालबाज़ियों से न केवल रिश्तों को जटिल बनाते हैं, बल्कि दूसरे व्यक्ति की पहचान और आत्मसम्मान को भी धूमिल कर देते हैं।

ये लोग अक्सर "Toxic", यानी विषैले व्यवहार के उदाहरण होते हैं, और उनके व्यवहार में गैसलाइटिंग, इमोशनल मैनिपुलेशन, कंट्रोलिंग टेंडेंसी, और नार्सिसिज़्म की झलक मिलती है। आइए ऐसे व्यक्तित्वों और उनके व्यवहार की मनोवैज्ञानिक परतों को समझते हैं।

1. संबंध की दोहरी मानसिकता: न तुम्हारा, न किसी और का

इस तरह के लोग एक विरोधाभासी मानसिकता में जीते हैं। वे किसी को अपने जीवन में पूरी तरह शामिल नहीं करना चाहते, लेकिन जब वही व्यक्ति अपनी राह पर आगे बढ़ता है या स्वतंत्रता की कोशिश करता है, तो वे बेचैन हो उठते हैं।

यह व्यवहार अक्सर इनसिक्योरिटी, ईगो थ्रेट, और अटैचमेंट डिसऑर्डर से जुड़ा होता है।

उदाहरण:

एक व्यक्ति अपनी पार्टनर के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा नहीं है, बात करने से कतराता है, पर जब वही पार्टनर किसी और से भावनात्मक सहारा लेने लगती है, तो वह व्यक्ति अचानक ईर्ष्या और अधिकार की भावना में आ जाता है।

2. हर बात में हस्तक्षेप: "मैं तुम्हारे हर निर्णय में रहूँगा"

ऐसे लोग किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, पसंद-नापसंद या निर्णयों को सम्मान नहीं देते। उन्हें हर बात में टांग अड़ाने की आदत होती है चाहे वह कपड़े पहनने का स्टाइल हो, करियर का चुनाव, या दोस्ती के दायरे।

यह व्यवहार कंट्रोलिंग बिहेवियर कहलाता है, जिसका मनोवैज्ञानिक कारण अक्सर खुद पर नियंत्रण की कमी होती है। जब व्यक्ति अपने जीवन पर नियंत्रण खो बैठता है, तो वह दूसरों के जीवन पर नियंत्रण पाकर खुद को ताकतवर महसूस करता है।

3. गैसलाइटिंग: "तुम ही पागल हो, मैं तो सही हूँ"

Gaslighting एक मनोवैज्ञानिक शोषण की प्रक्रिया है जिसमें सामने वाले व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति पर सवाल खड़े किए जाते हैं, ताकि वह अपने निर्णयों और भावनाओं पर भरोसा खो दे।

गैसलाइटिंग के उदाहरण:

"तुम हमेशा ज़रूरत से ज़्यादा रिएक्ट करती हो।"

"तुम्हें याद ही नहीं रहता, मैंने ऐसा कभी कहा ही नहीं।"

"तुम्हारा दिमाग खराब है, हर बात में तुम ही गलत हो।"

यह तकनीक व्यक्ति को संदेह, शर्म और आत्म-अविश्वास में डुबो देती है, जिससे वह भावनात्मक रूप से पराधीन हो जाता है।

4. विषैले संबंधों का चक्र: लूप जो टूटता नहीं

Toxic संबंध अक्सर एक चक्र में चलते हैं:

लुभावनापन (Idealization): शुरुआत में बहुत प्यार, प्रशंसा और आकर्षण दिखाया जाता है।

कमज़ोरी निकालना (Devaluation): धीरे-धीरे आलोचना, उपेक्षा और दोषारोपण शुरू होता है।

त्याग देना (Discard): जब व्यक्ति टूट जाता है, तो उसे "बेकार" समझकर छोड़ दिया जाता है।

वापसी (Hoovering): और जब वह व्यक्ति थोड़ा संभलता है, तो उसे फिर से वापस खींचने की कोशिश की जाती है।

यह चक्र बार-बार दोहराया जाता है और पीड़ित व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी पहचान खो देता है।

5. मनोवैज्ञानिक जड़ें: ये लोग ऐसे क्यों होते हैं?

"विषैले व्यवहार जन्म से नहीं आते, वे अक्सर अनसुलझे आघात, बचपन के अनुभव, और मनोवैज्ञानिक असुरक्षा से उपजते हैं।"

संभावित कारण:

बचपन में भावनात्मक उपेक्षा या दुराचार

खुद के प्रति आत्म-घृणा या आत्म-संदेह

नार्सिसिस्टिक पर्सनालिटी डिसऑर्डर (NPD)

बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर (BPD)

इनमें से कई लोगों को स्वयं भी यह नहीं पता होता कि वे दूसरों को कितना नुकसान पहुँचा रहे हैं।

6. इससे कैसे बचा जाए?

सीमाएं तय करें :-

स्पष्ट रूप से बता दें कि आप क्या बर्दाश्त करेंगे और क्या नहीं।

गैसलाइटिंग को पहचानें:

अपनी सच्चाई पर भरोसा करें। अपनी भावनाओं को खुद से वैध मानें।

सहायता लें:

काउंसलिंग, थेरेपी या समर्थन समूह से जुड़ना मददगार हो सकता है।

डिटैचमेंट की कला सीखें:

हर संघर्ष को जीतना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी हार मानकर दूर जाना ही असली जीत होती है।

आज़ादी की कीमत

ऐसे लोग जो न साथ निभा पाते हैं, न ही छोड़ पाते हैं वे असल में खुद अपने ही भीतर कन्फ्लिक्ट से जूझ रहे होते हैं। लेकिन उनका यह संघर्ष दूसरों को नष्ट कर सकता है।

इसलिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारी है स्वयं को बचाना, अपने आत्म-सम्मान को सुरक्षित रखना, और अपने जीवन का नियंत्रण वापस लेना।

"जो तुम्हारे साथ होना ही नहीं चाहता, वह तुम्हें कंट्रोल क्यों करे?

जवाब है ताकत, ईगो और डर।

लेकिन तुम्हारा जवाब होना चाहिए 'नहीं।'"

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