तुम्हारे व्यवहार से मैं आहत हुई,
लेकिन मैंने चिल्लाया नहीं।
कोई शिकायत नहीं की।
बस खुद को धीरे-से तुम्हारी ज़िंदगी से अलग कर लिया,
चुपचाप विदा ले ली।
तुमने शायद सोचा कि तुम जीत गए,
लेकिन समय के साथ ये ख़ामोशी तुम्हारे ज़मीर के दरवाज़े पर दस्तक देगी।
तुम चाहे इससे बचना चाहो,
लेकिन ये ख़ामोशी रुकेगी नहीं।
क्योंकि सच्चा विरोध कभी शोर नहीं मचाता,
ये खामोशी से बहता है—
तब तक, जब तक दिल में पछतावे की चिंगारी न जल उठे।
