(अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इंसान सच देख कर भी उसे मानने से इनकार कर देता है)
गांव नवगांव अपनी हरियाली और सादगी के लिए मशहूर था। लेकिन उस गांव की गलियों में जितनी मासूमियत थी, उतना ही अंधविश्वास भी बसता था।वहां हर बीमारी, हर हादसा, हर विपत्ति का कारण “देवी की नाराज़गी” या “भूत-प्रेत” माना जाता था।
गांव के बीचोंबीच एक पुराना पीपल का पेड़ था।लोग कहते थे — “रात को वहां मत जाना, वहां चुड़ैल रहती है।”कई बार किसी ने बस पेड़ के पास किसी की परछाई देख ली और पूरा गांव डर के साए में जीने लगा।
एक दिन गांव में एक नई टीचर आई — रीमा दीदी।शहर में पढ़ी-लिखी, समझदार और वैज्ञानिक सोच वाली।वह बच्चों को सिर्फ किताबों से नहीं, ज़िंदगी से भी पढ़ाना चाहती थी।
एक दिन कक्षा में उसने पूछा —“बच्चो, क्या भूत सच में होते हैं?”सबने एक साथ कहा — “हाँ दीदी! हमारे गांव में चुड़ैल रहती है। रात को वो लोगों को डराती है।”
रीमा मुस्कुराई और बोली —“अगर मैं तुम्हें साबित कर दूं कि वह चुड़ैल नहीं, इंसान है, तो?”बच्चे डर गए। बोले — “दीदी, मत जाइए, वो आपको खा जाएगी!”
लेकिन रीमा नहीं डरी।
रात को वह अकेली टॉर्च लेकर उसी पीपल के पेड़ की ओर चली गई।पूरा गांव अपने घरों में खिड़कियाँ बंद करके उसे जाते देख रहा था।पेड़ के नीचे अंधेरा था, पर रीमा की टॉर्च की रोशनी में उसे कुछ चमकता हुआ दिखा —वह कोई चुड़ैल नहीं थी, बल्कि एक बूढ़ी औरत थी, जो वहां रात को आकर खाना खाती थी।
असल में, वह औरत गांव के किनारे रहने वाली गौरी बाई थी — जो भूख से परेशान होकर दिन में लोगों से बचती थी और रात में मंदिर में रखे प्रसाद से अपना पेट भरती थी।लोगों ने जब उसे झुकते, फटे कपड़ों में देखा, तो सोच लिया कि वह चुड़ैल है।
रीमा ने अगले दिन पूरा सच गांव के सामने लाकर रख दिया।उसने बताया —“जिसे तुम भूत समझ रहे थे, वह तो तुम्हारी अपनी ही मां के उम्र की औरत है, जो भूख से मर रही थी।”
गांव वाले एक पल को चुप हो गए।लेकिन फिर किसी ने कहा —“दीदी, आप नहीं समझतीं, वो औरत है ही चुड़ैल। अगर नहीं होती, तो रात को वहां क्या करती?”
रीमा ने दुखी होकर कहा —“कभी-कभी इंसान को सच्चाई देखने के लिए बस अपनी आंखें खोलनी होती हैं, पर अफसोस... तुमने आंखें बंद करने का नाम ही विश्वास रख लिया है।”
कुछ दिन बाद गांव में बच्चों के स्कूल की छत पर रात को किसी ने कदमों की आवाज़ सुनी।फिर से अफवाह फैल गई — “अब चुड़ैल स्कूल में आ गई!”
रीमा ने तय किया कि वह सच सामने लाकर रहेगी।वह और कुछ साहसी बच्चे छत पर गए — और देखा कि वहां चूहे और उल्लू घूम रहे थे।
अगले दिन उसने बच्चों को समझाया —“हर चीज़ जो डराती है, वह भूत नहीं होती।कभी-कभी अंधेरा हमें धोखा देता है, और हम उसे सच मान लेते हैं।”
धीरे-धीरे कुछ लोग बदलने लगे।गांव में सफाई अभियान शुरू हुआ, लोगों ने मंदिर में गरीबों के लिए खाना रखना शुरू किया, और गौरी बाई को घर दिया गया।
पर फिर भी कुछ लोग अब भी कहते —“दीदी, आपकी पढ़ाई ठीक है, पर कुछ बातें किताबों से नहीं समझी जा सकतीं। भूत-प्रेत होते हैं, हमने खुद देखा है।”
रीमा बस मुस्कुरा देती।क्योंकि उसे अब समझ आ गया था —
“अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इंसान सच देख कर भी उसे मानने से इनकार कर देता है।”
सीख:
अंधविश्वास वह पर्दा है जो सच को दिखते हुए भी छुपा देता है।जब तक इंसान सोचने की हिम्मत नहीं करेगा, तब तक वह दूसरों की बनाई हुई कहानियों पर विश्वास करता रहेगा।सच्चाई हमेशा सामने होती है — बस आंखें खोलने की ज़रूरत है।
अंधविश्वास की जड़े इतनी गहरी हैं कि इंसान सच देख कर भी उसे मानने से इनकार कर देता है।
#Superstition @Superstition
