प्यार?
नहीं, वो बाद में आता है।
सबसे ज़रूरी है—संवाद (कम्युनिकेशन)।
एक रिश्ता तभी ज़िंदा रहता है, जब दो लोग नियमित रूप से बात करते हैं, एक-दूसरे को वक़्त देते हैं, मन से सुनते हैं और समझने की कोशिश करते हैं।
शारीरिक दूरी कोई समस्या नहीं है—अगर दिलों में दूरी न हो।
हज़ारों मील दूर रहकर भी लोग क़रीब हो सकते हैं, अगर रोज़ एक "मैं हूँ" कहा जाए।
हर दिन के वो छोटे-छोटे सवाल—
"कैसे हो?"
"आज क्या किया?"
"खाना खाया?"
इन छोटी बातों में ही रिश्ते की साँसें बसी होती हैं।
जब ये बातें बंद हो जाती हैं, तब रिश्ता भी साँस लेना भूल जाता है।
बेमेल होना, चुप रहना, बात न करना, अहमियत न देना—ये सब धीरे-धीरे एक रिश्ते को खत्म कर देते हैं।
जिस इंसान की कभी बहुत ज़रूरत थी, जो बहुत अपना लगता था, वही एक दिन अजनबी बन जाता है।
क्योंकि उसे वक़्त नहीं दिया गया, उससे बातें नहीं की गईं, उसे प्यार महसूस नहीं कराया गया।
अगर तुम बात नहीं करोगे, तो उसके मन की हालत कैसे जानोगे?
अगर तुम वक़्त नहीं दोगे, तो उसे कैसे लगेगा कि तुम अब भी हो?
कोई इंसान सिर्फ़ "मैं तुमसे प्यार करता हूँ" सुनकर नहीं रह सकता, वो इसे हर दिन महसूस करना चाहता है।
और जब रिश्ता एकतरफ़ा हो जाता है, तब वो इंसान प्यार नहीं चाहता—वो आज़ादी चाहता है।
क्योंकि तब प्यार सुकून नहीं देता, उदासी देता है।
जो सच में प्यार करता है, वो जानता है कि एक रिश्ता टूटना कितना दर्द देता है।
वो हर दिन थोड़ा वक़्त देना चाहता है, थोड़ी बातें करना चाहता है, थोड़ा महसूस कराना चाहता है—
"तुम अब भी मेरी दुनिया हो।"
और जो नहीं चाहता, उसके लिए रिश्ता बोझ बन जाता है।
वो फिर हालचाल नहीं लेता, बात नहीं करता, दूरी में ही सुकून ढूंढ़ता है।
चाहे दिल में प्यार हो, लेकिन वो रिश्ता टिक नहीं पाता।
रिश्ते में प्यार ज़रूरी है,
पर उसे सिर्फ़ दिल में छुपा कर रखने से कुछ नहीं होता—
अगर वो जताया न जाए, बताया न जाए, महसूस न कराया जाए, तो एक दिन वो प्यार सूख जाता है।
संवाद का मतलब सिर्फ़ बातें करना नहीं है—
संवाद का मतलब है दिल में एक-दूसरे को जगह देना।
उसके सुख-दुख में साथ खड़ा होना, दिन के अंत में उसका "अपना" बन जाना।
एक वक़्त आता है जब इंसान थक जाता है बार-बार समझाने से, कोशिश करने से।
फिर वो चुप हो जाता है।
ख़ुद को पीछे खींच लेता है।
और वहीं से रिश्ता ख़त्म हो जाता है—बिना शोर के।
इसलिए,
अगर सच में प्यार करते हो,
तो बात करो, हाल पूछो, वक़्त दो।
क्योंकि संवादहीनता में सबसे अपना इंसान भी एक दिन अजनबी बन जाता है।