प्रेम सिर्फ कोमलता नहीं, वह एक युद्ध भी है—अदृश्य, मौन और भीतर चलने वाला। कभी-कभी यह दुनिया इतनी शोरगुल और शत्रुता से भरी लगती है कि दो दिलों का साथ निभा पाना भी एक जंग जैसा लगता है। ऐसे ही किसी क्षण में एक मन ने अपने प्रेमी से कहा—"मुझे तुम्हारे सीने के उस हिस्से से बहुत लगाव है, जहाँ तुम्हारा दिल धड़कता है। मन करता है कि वहाँ कान लगाकर सुनूँ—क्या तुम्हारा दिल भी मेरे नाम से भारी होता है? क्या उसमें भी मेरे लिए कोई मूक प्रार्थना पलती है?"
वह मन जानना चाहता था—क्या उसके प्रेमी का मन भी दुनिया की तरह कभी-कभी बैरी हो उठता है? क्या वह भी कभी प्रेम को चोट पहुँचाने वाली इच्छाओं से भर उठता है? जब दो दिल टूटते हैं, जब रिश्ते बिखरते हैं—क्या वह भी दुनिया की तरह मुस्कुरा देता है, वैसी ही निर्मम हँसी से?
पर उस मन की सबसे बड़ी चाह यह थी—जब दुनिया का द्वेष, शंका और अलगाव रिश्तों पर भारी पड़ने लगे, तब उसका प्रेमी उसके साथ खड़ा हो। वह कहता है, "जब दुनिया हमें अलग करने की पूरी ताकत लगा दे, तुम मेरा साथ मत छोड़ना। तुम हिम्मत देना, डटे रहना—ताकि हम टूटने से पहले लड़ सकें।"
क्योंकि जब धरती एक युद्धभूमि बन जाए, तब प्रेम को बचाने के लिए दो दिलों को योद्धा बनना ही पड़ता है। और तब—हम, एक योद्धा-जोड़ा बन जाएंगे। दुनिया चाहे जितना ज़ोर लगा ले, हमारी एकता ही हमारी जीत होगी।
