प्रायोरिटी को सस्ता मत समझिए..!
दिन-रात टिक-टिक की आवाज़ से परेशान करने वाली
दीवार की घड़ी जब बैटरी की कमी से
रुक जाती है,
तब हमें समझ आता है कि
घड़ी की अहमियत क्या थी…।
ठीक वैसे ही, हमारे आसपास कुछ लोग होते हैं —
जिनके हँसी-खुशी के पल
या कुछ आम-सी व्यस्तताओं को
हम बहुत आलोचनात्मक नजरों से देखते हैं!
बार-बार फोन करना,
जरूरत हो या ना हो मैसेज करके हालचाल पूछना...
हमें वो सब बहुत परेशान करने वाला लगता है!
लेकिन जब एक दिन वो सब चुप हो जाता है,
तब हमें समझ आता है…
समझ आता है कि एक इंसान था।
जो अब खामोश हो गया।
उसके जाने के बाद हम सोचते हैं कि
काश हमने उसे अहमियत दी होती!
कभी जो हमारी चैट लिस्ट में
सैकड़ों मैसेज भेजता था,
अब कोई रिप्लाई नहीं आता।
हजार बार कॉल करने पर भी,
फोन का दूसरा सिरा खामोश रहता है।
तब हमें एहसास होता है कि
वो इंसान टाइमपास करने नहीं,
हमारा अपना बनने की कोशिश कर रहा था…
हमने सोचा वो टाइम पास कर रहा है!
हमें फुर्सत नहीं थी
उसे थोड़ी सी संगत देने की!
और फिर एक दिन
बहुत शांत दिखने वाला वो इंसान
बहुत गुस्से वाला बन जाता है,
लेकिन हमें उसे समझने का समय या एहसास नहीं होता।
उपेक्षित पत्थर भी घिस जाता है,
बिना देखभाल के लोहा भी जंग खा जाता है।
हम तो इंसान हैं, है ना?
किसी इंसान को,
या उसकी प्रायोरिटी को कभी सस्ता मत समझिए…
हर किसी की एक आत्म-सम्मान होती है, है ना?
हर दिल एक नरम कोना रखता है, है ना?

Never underestimate a person, or his/her priorities. Everyone has a self-esteem, right? Every heart has a soft corner, right?