"मैं पेट हूँ – मैं तुम्हारे सम्पूर्ण शरीर की जड़ हूँ…
मुझे संजोओ, मैं तुम्हें जीवन दूँगा…"
सुबह जब सूरज की किरणें खिड़की से कमरे में आती हैं,
उसी समय हमारे भीतर का एक मौन अंग – हमारा पेट –
धीरे से एक सन्देश देता है –
"मैं आज भी तुम पर भरोसा करता हूँ। जैसा भोजन दोगे,
मैं वैसा ही तुम्हें ऊर्जा दूँगा।"
खाली पेट की विनती – मुझे कुछ ऐसा दो…
1. मुझे गर्म पानी दो
"जब तुम सोते हो, मैं भी विश्राम करता हूँ।
लेकिन जागते ही मुझे चलना होता है –
गर्म पानी मेरा ईंधन है।
यह मुझे साफ करता है, शांत बनाता है,
और रात भर जमा हुए विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है।"
2. मुझे फेफड़े खोलने, शरीर को साफ करने वाला भोजन दो
जैसे कि – भीगे हुए बादाम,
गर्म पानी में नींबू की कुछ बूँदें,
या ताजे फल –
इन चीजों से मुझे हल्कापन, साफ़पन और स्फूर्ति मिलती है।
3. मुझ पर सुबह-सुबह बोझ मत डालो
अगर तुम मुझे सुबह ही मसालेदार, तला हुआ, भारी भोजन दे दोगे,
तो मैं परेशान हो जाता हूँ।
मैं जलता हूँ, सूजता हूँ।
फिर तुम दिनभर थकान, गैस, डकार और आलस्य से परेशान होते हो।
पेट कहता है – “जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करते हो,
मैं तुम्हें वैसा ही जीवन देता हूँ।”
हम जो भी खाते हैं – सबसे पहले वह पेट में जाता है।
पेट का काम है उस भोजन को जीवनदायी ऊर्जा में बदलना।
लेकिन यह तभी सम्भव है,
जब हम उसकी ज़रूरतों को समझें और उसे वैसा ही भोजन दें।
पाचन प्रक्रिया की सच्चाई
जैसे ही खाना पेट में पहुँचता है,
गैस्ट्रिक जूस बनता है।
फिर खाना आँतों में पहुँचता है,
जहाँ विभिन्न अंग उसे तोड़कर
शरीर के हिस्सों में बाँटते हैं।
पर यह प्रक्रिया तीन बातों पर निर्भर करती है:
1. समय के अनुसार भोजन –
सुबह हल्का, दोपहर में भरपूर, रात में फिर हल्का।
2. भावना के अनुसार भोजन –
खुश दिल से खाया भोजन आसानी से पचता है।
3. संयम के अनुसार भोजन –
थोड़ा-थोड़ा खाओ, उसी में संतोष है।
जब पेट दुखता है, पूरा शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
पेट ही जड़ है,
मूल है,
आधार है।
हम बाहर जाकर पैसा कमा सकते हैं,
पर पाचन की परेशानी शांति छीन लेती है।
हम मस्तिष्क को ज्ञान देते हैं,
लेकिन पेट को ज़हर –
फिर मस्तिष्क भी काम करना छोड़ देता है।
पेट के भीतर से उठते मौन सन्देश:
"मुझे समय पर भोजन दो, मैं तुम्हें रोगमुक्त रखूँगा।"
"मुझे संतुलन चाहिए – न अधिक, न कम।"
"मुझे अम्लीय नहीं, मधुर चाहिए। मसाले नहीं, जीवन चाहिए।"
"मुझे ध्यान दो – मैं मौन हूँ, लेकिन एक विश्वविद्यालय हूँ।"
निष्कर्ष: यदि पेट खुश है, तो जीवन खुश है।
"पेट की पूजा करो –
इसमें केवल अन्न नहीं, आत्मा भी बसती है।"
