किसी औपचारिकता में बंधे नहीं होते। वे चुपचाप पनपते हैं, बिना किसी घोषणा के। न उनके पास कोई नाम होता है, न ठिकाना, फिर भी वे भीतर कुछ ऐसा जगा देते हैं जिसे शायद हम खुद भी ठीक से समझ नहीं पाते।
जब कोई किसी के साथ इस कदर जुड़ जाए कि उसकी मुस्कान दिन बना दे, उसकी खामोशी दिल तक पहुँच जाए—तब रिश्ते की परिभाषा बदल जाती है। यह जुड़ाव हर बार ठीक नहीं माना जाता। लोग सवाल उठाते हैं, उंगलियाँ उठती हैं, और हम खुद भी कई बार दुविधा में पड़ जाते हैं। लेकिन जो महसूस होता है, वह इन सब से परे होता है।
ऐसे रिश्ते अक्सर परदे के पीछे रहते हैं। वे किसी फोटो फ्रेम में नहीं दिखते, किसी एल्बम का हिस्सा नहीं होते, लेकिन दिल में कहीं सबसे सुरक्षित कोना उन्हीं के लिए बना होता है। वे चुपचाप साथ चलते हैं—भीड़ में भी, तन्हाई में भी।
हाँ, इसमें दर्द है। हर मुलाक़ात के बाद एक अनकहा डर रहता है, हर पल में यह अहसास कि यह सब टिकाऊ नहीं है। फिर भी, एक बार जो सच्चा लगाव दिल को छू जाए, वह भुलाए नहीं भूलता। ऐसे रिश्ते हमें अपने अंदर झाँकना सिखाते हैं—जहाँ कुछ सच इतने अपने होते हैं कि उन्हें जताना भी भारी लगता है।
शायद ये रिश्ते दुनिया की नजर में सही न हों, पर उनमें जो जुड़ाव होता है, वह बेहद खरा होता है। वे हमें ये अहसास दिलाते हैं कि किसी के साथ होना सिर्फ साथ चलने का नाम नहीं, बल्कि एक ऐसे भाव का नाम है जो हर रुकावट के बावजूद ज़िंदा रहता है।
