एक बात हमेशा याद रखना—यह दुख, यह कष्ट, हर रात की खामोश सिसकियां, या दिन की थकी-हारी चुपचाप हाहाकार—इन सबका सामना तुम्हें अकेले ही करना होगा। समाज, परिवार, या दोस्त-यार, शायद किसी पल सहानुभूति का पर्दा खींचकर कहेंगे,
"हम हैं तुम्हारे साथ..."
लेकिन हकीकत यह है कि यह "साथ" बहुत क्षणिक है, बहुत नाजुक है।
कोई वास्तव में तुम्हारे दर्द की गहराई को नहीं समझता।
इसलिए, चाहे मुश्किलें कितनी भी तीखी क्यों न हों, लड़ना तुम्हें ही होगा।
और सिर्फ लड़ना ही नहीं, उस अंधेरी गली से रोशनी की ओर लौटने का रास्ता भी तुम्हें ही खोजना होगा।
क्योंकि, तुम्हारे अलावा कोई नहीं जानता—तुम्हारे जीवित रहने का मकसद कितना जरूरी है...
