मनुष्य की सबसे बड़ी भूलों में से एक यह है कि वह खुशी को हमेशा अपने वर्तमान से आगे कहीं और तलाशता है। ऐसा लगता है मानो खुशी कोई मंज़िल है, जिसे पाने के लिए हम लगातार दौड़ रहे हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने इस दौड़ में रुककर यह सोचा है कि जो कुछ हमारे पास है, वही कहीं हमारी खुशी की असली वजह हो सकता है?
एक नंगे आदमी के लिए खुशी बस एक जोड़ी जूते होती है। वह ठंडी ज़मीन, गर्म पत्थरों और काँटों से बचने की कल्पना करता है, और उसकी सबसे बड़ी इच्छा होती है – सिर्फ एक जोड़ी जूते। पर जब वही आदमी पुराने जूते पहनने लगता है, तो अब उसकी नजर नए जूतों पर टिक जाती है। फिर एक दिन जब उसे नए जूते मिल जाते हैं, तो उसकी खुशी ज्यादा देर टिकती नहीं – अब उसे और सुंदर, और महंगे जूते चाहिए होते हैं।
इंसान की यही फितरत है – वह जो नहीं है, उसी को चाहता है। पर क्या हमने कभी उस आदमी के बारे में सोचा है, जिसके पास पैर ही नहीं हैं? जिसके लिए नंगे पाँव चलना भी एक सपना है? उस व्यक्ति के लिए नंगे पाँव चलना भी एक वरदान है, जो दूसरों के लिए दुख का कारण है।
यह जीवन का बड़ा ही सादा, लेकिन गहरा सत्य है – खुशी उस चीज़ में नहीं होती जो हमें नहीं मिली, बल्कि उसमें होती है जो हमारे पास है। अगर हम अपनी नजरें अपनी इच्छाओं से हटाकर अपनी उपलब्धियों की ओर मोड़ लें, तो हमें एहसास होगा कि हम कितने समृद्ध हैं।
खुशी कोई भौतिक वस्तु नहीं है, जिसे तौलकर खरीदा जा सके। यह एक दृष्टिकोण है, एक सोच है, एक एहसास है।
इसलिए, जीवन को तौलने का पैमाना यह नहीं होना चाहिए कि हमारे पास क्या नहीं है, बल्कि यह होना चाहिए कि हमारे पास कितना कुछ है।
