एक गाँव में आदित्य नाम का लड़का पैदा हुआ। वह साधारण परिवार से था, न रूप-रंग में विशेष और न ही किसी अमीरी में। बचपन में जब-जब लोग उसे ताने मारते कि “तेरे पास न धन है, न रूप, न बड़ा खानदान… तू क्या कर पाएगा?”, तो उसका दिल टूट जाता। पर उसकी माँ हमेशा कहती थी –
“बेटा, जिस शरीर के साथ हम पैदा हुए हैं, उसके जिम्मेदार हम नहीं हैं, परंतु जिस चरित्र और किरदार के साथ हम विदा होंगे, उसके पूरे जिम्मेदार हम स्वयं होंगे।”
यह बात आदित्य के दिल में गहराई तक बैठ गई।
समय बीतता गया। गाँव के कई लड़के शहर चले गए, कुछ ने पैसा कमाया, कुछ दिखावे में खो गए। आदित्य ने अपनी पढ़ाई पूरी की और गाँव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे उसने बच्चों के लिए एक छोटा स्कूल खोला। उसके पास न ज्यादा साधन थे, न कोई बड़ी इमारत, पर उसका चरित्र और निष्काम सेवा सबके दिल जीत लेती थी।
सालों बाद, जब आदित्य बुढ़ापे की ओर बढ़ा, तो गाँव के लोग उसे “मास्टरजी” कहकर सम्मान देने लगे। जिसने कभी उसे ताना मारा था, वही अब अपने बच्चों को उसके स्कूल में भेजता था।
एक दिन जब वह बिस्तर पर अंतिम सांसें ले रहा था, पूरा गाँव उसके चारों ओर खड़ा था। उसकी आँखों में संतोष था, क्योंकि उसने समझ लिया था कि इंसान का असली मूल्य शरीर, रूप-रंग या दौलत से नहीं, बल्कि चरित्र और किरदार से होता है।
और उसकी माँ के शब्द मानो सच साबित हो चुके थे –
👉 “शरीर तो प्रकृति का दिया हुआ है, पर किरदार हमारे कर्मों का परिणाम है। और यही हमारी असली पहचान है।”
जिस शरीर के साथ हम पैदा हुए हैं !उसके जिम्मेदार हम नहीं हैं, परंतु जिस चरित्र और किरदार के साथ हम विदा होंगे उसके पूरे जिम्मेदार हम स्वयं होंगे
