एक छोटे से कस्बे में एक लड़का रहता था — आरव। आरव दिल का बहुत अच्छा इंसान था। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे रहता था — कभी किसी पड़ोसी की बिजली का बिल भर देता, तो कभी किसी दोस्त की ट्यूशन फीस। मोहल्ले में किसी के घर शादी हो, बीमार कोई हो, या किसी को किसी फॉर्म में मदद चाहिए — सबसे पहले नाम आता था आरव का।
लोग उसे प्यार से “हमारा आरव” कहते थे। पर धीरे-धीरे, यह प्यार आदत में बदल गया। अब कोई “धन्यवाद” नहीं कहता था, बस यह उम्मीद करता था कि आरव करेगा ही।
हर सुबह जब वह घर से निकलता, तो उसके पास मदद के लिए कोई न कोई जरूर आता। “भाई, जरा स्टेशन छोड़ दो”, “यार, मेरा लैपटॉप ठीक कर दो”, “आरव, तू तो जानता है ना सब कुछ, मेरे बच्चे को समझा दे जरा” — और आरव हँसकर सबका काम कर देता।
वह थकता नहीं था, क्योंकि उसे लगता था कि यही उसका कर्तव्य है। लेकिन एक दिन, वह सचमुच थक गया।थक गया अहसान के बोझ से नहीं, बल्कि अपेक्षाओं के बोझ से।
वह सोचने लगा — “क्या मैं इसलिए अच्छा हूं क्योंकि मैं सबकी मदद करता हूं, या लोग मुझे सिर्फ इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि मैं उनके काम आता हूं?”
एक दिन उसने ठान लिया — अब वह कुछ दिन किसी का काम नहीं करेगा, सिर्फ खुद पर ध्यान देगा।वह अपने कमरे में बैठा, किताबें पढ़ने लगा, खुद के लिए वक़्त निकालने लगा। किसी का फोन आता, तो वह मना कर देता, “भाई, आज नहीं हो पाएगा।”
और यहीं से कहानी पलट गई।
जिन लोगों ने कभी उसकी तारीफों के पुल बांधे थे, अब वही कहने लगे —“आरव पहले जैसा नहीं रहा।”“पता नहीं इसे क्या हो गया, बड़ा स्वार्थी हो गया है।”“पहले तो बहुत मदद करता था, अब तो चेहरा भी नहीं दिखाता।”
आरव मुस्कुराता रहा।उसे समझ आ गया था कि जब तक पंखा चलता रहता है, कोई उसकी ओर देखता नहीं, लेकिन जैसे ही वह बंद होता है, सबकी नजर उसी पर टिक जाती है।
अब वह जान चुका था कि जो लोग उसके “चलते रहने” पर ध्यान नहीं देते थे, वे उसके “रुक जाने” पर ताने देंगे।लेकिन अब आरव ने अपने दिल को मज़बूत कर लिया था।वह समझ चुका था —“अगर तुम सबके लिए जीते रहोगे, तो खुद के लिए कभी नहीं जी पाओगे।”
कई महीनों बाद जब लोगों को एहसास हुआ कि आरव अब किसी का काम नहीं कर रहा, तो धीरे-धीरे वे खुद अपने काम करने लगे। और जब कभी आरव मदद करता, तो लोग सच में उसका एहसान मानते।
उस दिन आरव ने अपने डायरी में लिखा —
“पंखा तभी तक चलता है जब उसमें बिजली होती है। इंसान तभी तक देता है जब उसके भीतर भावनाएं होती हैं। अगर लोग उस भाव को थका दें, तो एक दिन वह भी बंद हो जाता है। और जब वह बंद हो जाए, तो उसे दोष मत दो — उसने बस आराम लेना सीखा है।”
उस दिन से आरव ने सीखा —मदद करो, पर अपनी कीमत समझो।प्यार दो, पर खुद को मत भूलो।और कभी किसी को इतना आदती मत बनाओ कि तुम्हारे बिना वे जी ही न सकें,क्योंकि जब तुम रुकोगे, तो वही लोग कहेंगे — “तुम बदल गए हो।”
सीख:
लोग अक्सर उस “पंखे” को भूल जाते हैं जो हर वक्त हवा देता है,पर जैसे ही वह रुकता है — शिकायत शुरू हो जाती है।इंसान भी वैसा ही है —जब तक देता है, सबका प्रिय होता है,और जब देना बंद करता है, तो “बदला हुआ” कहलाता है।
जब तक पंखा चलता रहता है, उस पर कोई ध्यान नहीं देता लेकिन जैसे ही वह बंद होता है, सबकी नज़रें उसी पर टिक जाती हैं।
ठीक वैसे ही, जब एक इंसान सबके लिए सबकुछ करता रहता है, तब तक कोई उस पर ध्यान नहीं देता लेकिन जैसे ही वह सबकुछ करना बंद कर देता है, लोग यह कहने लगते हैं कि वह बदल गया है
