अंदाज़ अपना अपना
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" आज से हम दोनों एक नए जीवन की शुरुआत कर रहे हैं।जीवन में किसी भी परेशानी का एक साथ मिलकर मुकाबला करेंगे।" सोमेश ने अपनी पत्नी से एकांत पाते ही बातों का सिलसिला शुरू किया।
" जी!" नई नवेली दुल्हन ने सर झुका कर केवल इतना ही कहा।
" तुम्हें पता है मेरे माता पिता ने मुझे बहुत दुःख मुसीबत उठा कर पाला पोसा है।कड़ी मेहनत से कमा कर पढ़ाया लिखाया है।"
जी !दुल्हन ने फिर संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
सोमेश ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा ,"अब हम दोनों की बारी है उनका ध्यान रखने की।"
सोमेश इसी तरह बहुत देर तक अपने माता पिता के संघर्ष की कहानी सुनाता रहा और नई दुल्हन मजबूरी वश सुनती रही।
ऐसा नहीं था कि सोमेश ये सारी गाथा पहली बार सुना रहा था।शादी से पहले भी वह जब भी मिला उसने माता पिता के संघर्ष की लंबी गाथा अवश्य सुनाई थी।
सोमेश फिर बोला ," पता है जब मैं चार साल का था ,मेरे पिता जी ने ......."
इस बार दुल्हनिया ने बीच में रोकते हुए कहा,
सुनो मुझे भी एक बात कहनी है ,"मेरे माता पिता तो मुझे पास ही के मॉल से इसी तरह पली - बढ़ी ,पढ़ी -लिखी , रेडीमेड खरीद कर ले आए थे।"
सोमेश कुछ पलों के लिए अपनी नई नवेली को देखता रह गया।
लगा कुछ अनपेक्षित घट गया।
दुल्हन मुस्कुरा रही थी सोचते हुए ,"जरूरी नहीं कि कुछ तोड़ने के लिए पत्थर की ही आवश्यकता हो ,अंदाज़ बदल कर बोलने से भी बहुत कुछ टूट सकता है
