#सनकी_MindedPeople
वह दो बार दुकान पर काम बदल चुका था, पर सफलता न मिली थी। वह दुकान को बेचने की बात सोचने लगा था। एक छुट्टी के दिन उसे घर के कबाड़ में पड़ा एक पुराना नक्शा मिला था, जिसमें घर के पिछवाड़े में एक बॉक्स दबा होने का संकेत था। वह पिछवाड़े जा पहुँचा और संकेतों को समझते हुए सही स्थान पर बड़े उत्साह से खोदने लगा।
‘जाने बॉक्स में क्या होगा?’ यह सोचते हुए वह प्रेरित था। अचानक नीचे की पथरीली कठोर मिट्टी के कारण खुदाई कठिन हो गयी। फिर भी वह खोदता रहा मगर अब नीचे एक बड़ा पत्थर आ गया।
“धत् तेरे की...” उसके मुँह से निकला और उसने खोदना बंद कर दिया।
“अपनी छुट्टी ही बर्बाद की!” वह खुद पर हँसा।
वह चार फुट गहरे गड्ढे से निकलने लगा तो उसका पाँव फिसला और वह नीचे गिर गया। उसका हाथ मिट्टी में सने एक लिफाफ़े पर पड़ा जो अन्यथा नज़र नहीं आ रहा था। पत्र में एक रेखा चित्र था और लिखा था—
अक्सर, जब आप घोर निराशा की सीमा रेखा छूकर लौटने लगते हैं, तो उसके एक कदम आगे ही, अदृश्य कामयाबी आपका स्वागत करने के लिए बेचैन खड़ी होती है।
उसमें लिखे संदेश से वह समझ गया कि उसे दुकान बेचनी नहीं है, बल्कि और मेहनत करनी है। उसने उस दिशा देने वाले पत्र को चूम लिया और उस पत्थर को हटाने का जतन करने लगा। पत्थर हटाते ही उसे बॉक्स मिला जिसमें सोने के दस सिक्के थे।
दुनियाँ वाले उसके पिता को एक सनकी इंसान बताते थे।
“आप वाकई सनकी थे पिता जी!” वह खुशी से चिल्लाया।
सनकी... जो करे मन की!
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