रीमा एक छोटे कस्बे की साधारण लड़की थी। उसका सपना था पढ़-लिखकर कुछ बनने का, लेकिन घरवालों का मानना था कि “लड़की का असली घर उसका ससुराल होता है, पढ़ाई-लिखाई का क्या करना।”रीमा ने मन मारकर पढ़ाई छोड़ दी और जल्दी ही उसकी शादी कर दी गई।
नई ज़िंदगी –
शादी के बाद रीमा अपने ससुराल आ गई। वहाँ उसने देखा कि घर का सारा कामकाज उसी के कंधों पर है।सुबह से रात तक वह रसोई, सफ़ाई, कपड़े धोने, और रिश्तेदारों की देखभाल में लगी रहती।
लेकिन जब भी उसे अपनी ज़रूरत की कोई छोटी चीज़ चाहिए होती—साबुन, किताब, या कभी अपनी पसंद का कपड़ा—तो उसे पति से पैसे मांगने पड़ते।
पति भले ही पैसे दे देता, लेकिन हर बार रीमा को यह अहसास होता कि वह अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए भी दूसरों पर निर्भर है।
पहला झटका –
एक दिन उसके बचपन की सहेली नेहा उससे मिलने आई। नेहा नौकरी करती थी और आर्थिक रूप से स्वतंत्र थी।रीमा ने हिचकिचाकर पूछा—“नेहा, अच्छा लगता है जब तुम्हें किसी से पैसे नहीं मांगने पड़ते?”
नेहा ने मुस्कुराकर कहा—“रीमा, पैसा सिर्फ़ खर्च करने के लिए नहीं होता, पैसा अपनी पहचान बनाने का माध्यम है। जब तुम खुद कमा कर खर्च करती हो, तो तुम्हें अपने अस्तित्व का एहसास होता है। खुद कमाना आत्म-सम्मान देता है।”
उस दिन रीमा के दिल में गहरी चुभन हुई। उसने सोचा—“सही कहा… मैं दिन-रात काम करती हूँ, पर घर के काम की कोई गिनती ही नहीं। पैसे कमाना कितना ज़रूरी है, यह अब जाकर समझ आ रहा है।”
संघर्ष की शुरुआत –
रीमा ने निश्चय किया कि वह खुद की पहचान बनाएगी।उसके पास ज्यादा पढ़ाई तो नहीं थी, लेकिन वह सिलाई अच्छे से जानती थी। उसने घर में ही सिलाई का छोटा-सा काम शुरू किया।
शुरू में लोग ताने मारते—“बहू घर का काम करे या धंधा?”“पति कमा रहा है, तो बहू को क्यों कमाने की जरूरत है?”
लेकिन रीमा ने किसी की परवाह नहीं की। वह जानती थी कि यह उसकी स्वतंत्रता की लड़ाई है।
सफलता की ओर –
धीरे-धीरे उसके काम की चर्चा फैल गई। मोहल्ले की महिलाएँ उसके पास कपड़े सिलवाने आने लगीं।कुछ ही महीनों में वह इतना कमा लेती कि अपनी ज़रूरतें खुद पूरी कर सके।पहली बार जब उसने अपनी कमाई से अपनी पसंद का दुपट्टा खरीदा, उसकी आँखों में गर्व और आत्मसम्मान के आँसू थे।
असली पहचान –
अब रीमा को समझ आ गया कि शादी के बाद स्त्री के लिए पैसा और पहचान दोनों कितने ज़रूरी हैं।
पैसा उसे निर्भरता से आज़ादी देता है।
पहचान उसे समाज में सम्मान दिलाती है।
और सबसे बढ़कर, यह उसे अपने अस्तित्व का बोध कराता है।
उसने गाँव की औरतों को भी प्रेरित करना शुरू किया—“बहनों, सिर्फ़ दूसरों पर निर्भर मत रहो। घर के काम करो, पर साथ ही अपने हुनर को पहचानो। चाहे छोटा काम हो, लेकिन खुद की कमाई ज़रूरी है। क्योंकि स्वावलंबन ही असली शक्ति है।”
संदेश :
👉 स्त्रियों को पैसों की अहमियत तब समझ आती है जब उन्हें अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।
👉 शादी के बाद औरतें अगर अपना हुनर और पहचान बनाएँ, तो वे न केवल खुद को, बल्कि पूरे परिवार को सम्मान और खुशहाली दे सकती हैं।
👉 याद रखिए—स्वावलंबन ही स्त्री का सबसे बड़ा गहना है।
