अवनि और आर्यन की शादी को अभी बस छह महीने हुए थे। दोनों एक-दूसरे से प्यार तो करते थे, लेकिन शादी के बाद उन्होंने महसूस किया कि असली ज़िंदगी कुछ और ही है। अब यह सिर्फ़ डेट्स और फोन कॉल्स तक सीमित नहीं थी, बल्कि साथ रहने की जिम्मेदारियों और एक-दूसरे की आदतों को अपनाने की यात्रा शुरू हो चुकी थी।
शुरुआती दिनों में अक्सर छोटी-छोटी बातों पर बहस हो जाती थी—कभी घर के कामों को लेकर, कभी पैसों को लेकर और कभी अपने-अपने शौक़ को लेकर। परिवार वाले कहते, “ये तो हर नए शादीशुदा रिश्ते में होता है, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।” लेकिन अवनि को लगता था कि अगर अभी कोशिश न की, तो आगे रिश्ते में दरारें गहरी हो सकती हैं।
एक दिन अवनि ने आर्यन से कहा,"प्यार अपने आप नहीं होता, हमें इसे निभाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। जिस तरह हम पहले एक-दूसरे के लिए वक्त निकालते थे, अब भी वही करना होगा।"
आर्यन ने पहले इसे मज़ाक में लिया, लेकिन धीरे-धीरे समझा कि सचमुच रिश्ते को संभालने के लिए एफर्ट ज़रूरी हैं। दोनों ने तय किया कि हर हफ़्ते एक दिन सिर्फ़ एक-दूसरे के लिए होगा—कोई फोन नहीं, कोई काम नहीं, बस बातचीत और साथ का समय।
धीरे-धीरे उन्होंने एक-दूसरे की आदतें और शौक़ समझने शुरू किए। अवनि को संगीत पसंद था, तो आर्यन ने उसके साथ गाने सुनने की आदत बना ली। आर्यन को खेलों का शौक था, तो अवनि ने उसके साथ कभी-कभी क्रिकेट मैच देखना शुरू कर दिया। इस छोटे-छोटे प्रयास ने उनके रिश्ते में एक नई मिठास भर दी।
लेकिन सब आसान नहीं था। एक समय ऐसा आया जब झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों कई दिनों तक बात नहीं करते थे। यह एक रेड फ्लैग था। अवनि ने हिम्मत करके एक काउंसलर से मदद ली। शुरू में आर्यन नहीं मान रहा था, लेकिन जब उसने देखा कि अवनि काउंसलिंग से और स्पष्ट और शांत हो गई है, तो उसने भी इसमें हिस्सा लेना शुरू किया।
काउंसलिंग से उन्हें समझ आया कि झगड़ा होना गलत नहीं है, लेकिन हर बार उसे सुलझाने की कोशिश करना ज़रूरी है। जो पार्टनर रिश्ते को संभालने के लिए प्रयास करता है, वही असली प्यार करता है।
दोनों ने यह भी तय किया कि जब तक वे एक-दूसरे को पूरी तरह न समझ लें और अपने मतभेदों को संभालना न सीख लें, तब तक बच्चे की योजना नहीं बनाएंगे। क्योंकि बच्चा तभी खुशहाल माहौल में बड़ा हो सकता है, जब उसके माता-पिता का रिश्ता मजबूत और संतुलित हो।
समय के साथ, उनकी मेहनत रंग लाई। अब उनका रिश्ता पहले से कहीं ज़्यादा गहरा और मज़बूत था। उन्होंने सीखा कि शादी केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि हर दिन किया गया एक वादा है—प्यार करने का, समझने का और साथ चलने का।
सीख:शादी के बाद प्यार अपने आप नहीं आता, उसे निभाने के लिए दोनों को मेहनत करनी पड़ती है। अगर शुरू में मतभेद हों तो उन्हें नज़रअंदाज़ न करें, बल्कि सुलझाने की कोशिश करें। प्रोफेशनल मदद लेने में झिझकें नहीं। और सबसे ज़रूरी—बच्चे की योजना तभी बनाएं जब आपका रिश्ता स्थिर और परिपक्व हो जाए। क्योंकि प्यार की असली खूबसूरती तभी खिलती है, जब वह समझ, धैर्य और सम्मान से सींचा गया हो।
शादी के बाद एक-दूसरे को समझने के लिए समय लीजिए. ये नहीं कि शादी हो गई है तो प्यार हो गया है. बिना एफर्ट के कुछ नहीं होता है. जैसे बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड बनाने के लिए आप ज़मीन-आसमान एक कर देते हैं वैसे ही शादी के बाद एक-दूसरे से प्यार हो उसके लिए कोशिश करिए!
— जब तक एक-दूसरे को ढंग से जान न लें साथ ही साथ आदत-शौक़ सब कुछ तब एक बेबी प्लान न करें.
— अगर शादी के शुरुआत में झगड़े हो रहे हैं, आपस में लंबे समय तक बात न हो रहा है तो इसे रेड फ्लैग समझें और किसी प्रोफेशनल की हेल्प लें.
— दोनों में से कोई एक पार्टनर शायद काउंसलिंग या थेरेपी के लिए मना करे लेकिन अगर आपको लगता है कि कुछ ग़लत हो रहा है तो आप अपने लिए थेरेपी ले सकते है. इससे कम से कम आप क्लियर हो पायेंगी/पाएंगे कि कुछ ग़लत तो नहीं हो रहा है.
— परिवार वाले अगर कहते हैं कि शादी के शुरुआत में झगड़े होते हैं कोई बड़ी बात नहीं है तब भी आप ये देखें कि झगड़े को सुलझाने के लिए कौन कितना एफर्ट ले रहा है.
— एक बार बच्चा हो जाने पर आप और उलझ जाते हैं इसलिए पहले ही अपने उलझनों को सुलझा लें फिर उसके बाद किसी को इस दुनिया में लायें.
