“माँ के पल्लू से बंधी ज़िन्दगी”
शहर के एक मोहल्ले में अभय नाम का युवक रहता था। पढ़ाई-लिखाई में तेज़, नौकरी में ईमानदार और स्वभाव से शांत। उसकी माँ-बाप ने उसके लिए एक सुंदर और संस्कारी लड़की रीना को चुना। शादी धूमधाम से हुई और सबने कहा – “भाग्यशाली है अभय, रीना जैसी बहू मिली है।”
शादी के शुरुआती दिनों में सब ठीक रहा। रीना हँसमुख थी, परंतु उसकी एक आदत थी – वह हर छोटी-बड़ी बात अपनी माँ से पूछे बिना नहीं करती थी।
खाना कैसे पकाना है,
पैसे कहाँ खर्च करने हैं,
घर का सामान कब लाना है,
यहाँ तक कि पति से बात भी कितनी करनी है – वह सब अपनी माँ से पूछकर करती।
अभय ने पहले तो इसे अनदेखा किया। सोचा, “नया घर है, समय लगेगा।” लेकिन धीरे-धीरे यह आदत बोझ बनने लगी।
दखल की शुरुआत
एक दिन अभय ने कहा –“रीना, इस महीने हमें कुछ पैसे बचाने होंगे। सोच रहा हूँ, गाँव जाकर थोड़ी ज़मीन खरीद लें। भविष्य के लिए अच्छा रहेगा।”
रीना मुस्कराई, पर अगले ही दिन उसने अपनी माँ से फ़ोन पर कहा –“माँ, अभय ज़मीन खरीदना चाहता है। मुझे समझ नहीं आता, ये ठीक है या नहीं।”
माँ ने तुरंत टोक दिया –“नहीं-नहीं, गाँव की ज़मीन में मत फँसना। सब धोखेबाज़ होते हैं। तुम मना कर दो।”
रीना ने वही किया। अभय की योजना अधूरी रह गई।
रिश्तों में दूरी
समय बीतने लगा। रीना हर सुबह सबसे पहले अपनी माँ को फ़ोन करती और दिन भर की बातें पूछती। अगर अभय ने कहा –“आज चलो कहीं घूमने चलते हैं।”तो जवाब मिलता –“माँ से पूछकर बताती हूँ।”
धीरे-धीरे अभय को लगने लगा कि उसकी पत्नी उसकी साथी नहीं, बल्कि अपनी माँ की परछाईं है। घर में हर समय कलह शुरू हो गया।
कभी सास-बहू के बीच झगड़ा,
कभी पति-पत्नी में दूरी,
कभी खर्चे पर विवाद।
अभय की मुस्कान गायब हो गई। ऑफिस में भी वह परेशान रहने लगा। दोस्त पूछते –“क्या हुआ, सब ठीक तो है?”वह बस चुप हो जाता।
तकरार का तूफ़ान
एक दिन अभय ने गुस्से में कह दिया –“रीना! अगर हर बात तुम्हें अपनी माँ से ही पूछनी है, तो मुझसे शादी क्यों की? पति का घर छोड़कर तुम अभी भी माँ के पल्लू से बंधी हो। इससे तो तुम हमारे जीवन में सिर्फ कलेश और परेशानी ला रही हो।”
रीना यह सुनकर रोने लगी। वह बोली –“मैं तो बस अपनी माँ की बात मान रही थी। वह मेरे लिए सबसे बड़ी हैं।”
अभय शांत स्वर में बोला –“माँ का सम्मान अपनी जगह है, लेकिन शादी के बाद पति-पत्नी की ज़िन्दगी मिलकर चलानी पड़ती है। अगर हर वक़्त बाहरी दखल होगा, तो सुख चैन कैसे मिलेगा? पत्नी अगर माँ के पल्लू से बंधी रहे, तो वह अपने पति की दुनिया में सुख नहीं, बल्कि दुख ही लाती है।”
सच्चाई का एहसास
रीना को पहली बार अहसास हुआ कि उसकी आदतें ही घर की बर्बादी का कारण बन रही हैं। माँ से सलाह लेना बुरा नहीं था, लेकिन हर बात पर निर्भर रहना पति के आत्मसम्मान को चोट पहुँचा रहा था।
कुछ दिनों तक वह सोचती रही। फिर उसने धीरे-धीरे बदलाव शुरू किया।
घर के छोटे-छोटे फ़ैसले खुद लेने लगी।
पति से चर्चा कर योजनाएँ बनाने लगी।
माँ से बात करती, लेकिन अपनी ज़िन्दगी की बागडोर खुद संभालने लगी।
धीरे-धीरे घर का माहौल बदलने लगा। अभय के चेहरे पर मुस्कान लौट आई और रीना को भी लगा कि असली सुख तो तभी है जब पति-पत्नी साथ मिलकर अपनी दुनिया सँवारें।
शिक्षा
शादी के बाद लड़की को अपने मायके और माँ-बाप का सम्मान बनाए रखना चाहिए, लेकिन अगर वह हर समय माँ के पल्लू से बंधी रहेगी, तो वह अपने पति की दुनिया में दुख, कलह और बेचैनी ही लाएगी।पति-पत्नी का रिश्ता तभी मजबूत होता है जब दोनों मिलकर जीवन का निर्णय लें, न कि बाहर के लोग।
