एक गाँव में राघव और संध्या नाम का दंपति रहता था। दोनों की शादी को कुछ ही महीने हुए थे। शुरुआत में सब कुछ नया-नया और खूबसूरत लग रहा था, लेकिन जैसे ही समय बीता, छोटी-छोटी बातों पर मतभेद होने लगे।
राघव को लगता – “संध्या मुझे समझती ही नहीं।”संध्या सोचती – “राघव मेरी भावनाओं को महत्व क्यों नहीं देता?”
दोनों की शिकायतें धीरे-धीरे बढ़ने लगीं। कभी काम को लेकर, कभी परिवार को लेकर, तो कभी छोटी आदतों को लेकर। शादी का मधुर संगीत कहीं खोता सा दिखने लगा।
एक दिन राघव के घर में गाँव के बुजुर्ग आए। वे बहुत ज्ञानी और अनुभवशील इंसान थे। उन्होंने दोनों की खामोशी और दूरी को भांप लिया।
उन्होंने राघव से कहा –“बेटा, मुझे अपनी बांसुरी बजाकर सुनाओ। बहुत दिनों से तुम्हें सुना नहीं।”
राघव ने झिझकते हुए बांसुरी उठाई। बजाई तो स्वर बिगड़ गए। बुजुर्ग मुस्कुराए और बोले –“पता है क्यों? क्योंकि बांसुरी में बहुत छेद होते हैं। अगर इन्हें सही तरीके से बंद और खोलना न आ पाए, तो धुन बिगड़ जाती है। लेकिन अगर सही समय पर सही जगह उँगली रख दी जाए, तो वही बांसुरी स्वर्ग जैसा संगीत देती है।”
फिर उन्होंने दोनों की ओर देखकर कहा –“शादी भी ठीक ऐसी ही बांसुरी है। इसमें भी कई छेद और खालीपन होते हैं। शुरुआत में ये अधूरेपन जैसे लगते हैं। लेकिन असली कला तो इन्हीं से संगीत निकालने में है। अगर तुम शिकायतों में ही उलझे रहोगे, तो यह रिश्ता शोर बन जाएगा। लेकिन अगर धैर्य और समझ से इसे निभाओगे, तो यह जीवन की सबसे प्यारी धुन बन जाएगा।”
उनकी बात राघव और संध्या के दिल में उतर गई।उस दिन से दोनों ने ठान लिया कि वे एक-दूसरे की कमियों पर ध्यान देने के बजाय एक-दूसरे के साथ तालमेल बनाने की कोशिश करेंगे।
जब राघव थका हुआ घर आता, तो संध्या उसका चेहरा देखकर चुपचाप चाय ले आती। जब संध्या उदास होती, तो राघव बिना पूछे उसका हाथ थाम लेता। धीरे-धीरे छोटी-छोटी नाराज़गियाँ भी प्यार में बदलने लगीं।
उनके रिश्ते की बांसुरी अब धीरे-धीरे मधुर धुन छेड़ने लगी थी।
✨ सीख:शादी का सौंदर्य परफेक्ट इंसान पाने में नहीं, बल्कि अधूरेपन को स्वीकार कर लेने में है।जैसे बांसुरी के छेद मिलकर संगीत बनाते हैं, वैसे ही पति-पत्नी की कमियाँ और खूबियाँ मिलकर जीवन का सबसे सुंदर गीत रचती हैं।
शादी एक बांसुरी की तरह होती है। उसमें कई छेद होते हैं, कई खालीपन होते हैं। पहली नज़र में ये छेद और खालीपन अधूरापन लग सकते हैं, मानो रिश्ते में कोई कमी रह गई हो। लेकिन सच्चाई यही है कि इन्हीं खाली जगहों से,इन्हीं अधूरेपन से सबसे मधुर और सबसे सुंदर धुन निकलती है।
जैसे एक कलाकार बांसुरी बजाना सीखता है, वैसे ही पति-पत्नी को भी एक-दूसरे के साथ तालमेल बनाना पड़ता है। हर स्वर को सही जगह दबाना, हर लय को सही समय पर छेड़ना यही कला है रिश्ते को जीवंत और मधुर बनाने की।
अगर आप शिकायत में ही उलझे रह गए, तो बांसुरी सिर्फ़ शोर करेगी। लेकिन अगर आप धैर्य और समझ से इसे छेड़ेंगे,तो वही बांसुरी जीवन की सबसे प्यारी धुन बजाएगी।
शादी का असली सौंदर्य इसी में है अधूरेपन को भी स्वीकार कर लेना, कमियों को भी मिलकर संभालना,
और उस खालीपन से जीवन का संगीत रचना।
