हमसफर कितना कमाता है ये मायने नहीं रखता है वो आपका कितना ख्याल रखता है ये मायने रखता है.!! शहरो में लेती होंगी पत्नियां अपने पति जान गांव में आज भी पत्नियां अपने पति को परमेश्वर मानती हैं...
रवींद्र एक छोटे से गाँव में पला-बढ़ा। खेती उसका पेशा था और रोज़ सुबह से शाम तक वह खेतों में मेहनत करता। उसकी आमदनी सीमित थी, बस इतनी कि घर का चूल्हा जलता रहे। लेकिन उसकी पत्नी सीमा के लिए वह दुनिया का सबसे अमीर इंसान था।
शहर और गाँव का फर्क
शहरों में जब भी सीमा अपनी सहेलियों से मिलती, वे अक्सर पूछतीं—“तुम्हारा पति कितना कमाता है?”“कितनी ज़मीन है तुम्हारे पास?”“कभी सोचा है कि शहर जाकर कोई बड़ी नौकरी करे?”
सीमा बस मुस्कुरा देती। वह जानती थी कि लोग पैसों से ही इंसान की हैसियत मापते हैं। लेकिन उसके लिए रवींद्र की परवाह और अपनापन किसी भी दौलत से बढ़कर था।
असली मायने समझना
रवींद्र भले अमीर न था, लेकिन जब भी सीमा बीमार पड़ती, वह रात-रात भर उसके पास जागता।
खेत का काम छोड़कर उसके लिए दवा लाता।
उसके पसंद का खाना खुद बनाकर खिलाता।
धूप से बचाने के लिए खेत में काम करते वक़्त उसके सिर पर गीला कपड़ा रखता।
सीमा के लिए यही सबसे बड़ी दौलत थी—“मेरा पति मुझे परमेश्वर की तरह मानता है, और मैं उसे।”
शहर की परछाई
एक दिन सीमा की सहेली मीना, जो शहर में रहती थी, गाँव आई। उसने देखा कि रवींद्र खेती के कपड़ों में धूल-मिट्टी से सना हुआ घर आ रहा है और सीमा दौड़कर उसके लिए पानी ले आई।
मीना हँसकर बोली—“सीमा, तुम अब भी अपने पति को ‘परमेश्वर’ मानती हो? शहर में तो औरतें बराबरी का हक़ मांगती हैं। वहाँ पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं, दोनों मिलकर खर्च चलाते हैं।”
सीमा ने शांति से जवाब दिया—“मीना, बराबरी का मतलब सिर्फ़ कमाई नहीं होता। मेरा पति भले कम कमाता है, पर मेरा ख्याल किसी देवता की तरह रखता है। अगर पत्नी पति को परमेश्वर मानती है तो उसका कारण उसकी दौलत नहीं, उसका समर्पण और प्रेम होता है।”
असली परीक्षा
एक साल गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। घर में खाने तक का संकट आ गया। ऐसे हालात में कोई भी औरत पति को कोसती कि "तुम कमा नहीं सकते, मेरी किस्मत खराब है।"
लेकिन सीमा ने रवींद्र का हाथ पकड़कर कहा—“तुम चिंता मत करो। मैं भी तुम्हारे साथ खेत में मेहनत करूँगी। हम दोनों मिलकर ये मुश्किल पार करेंगे।”
दोनों ने मिलकर मेहनत की। रवींद्र दिन में खेत संभालता और सीमा रात में सब्जियाँ उगाकर सुबह बाज़ार में बेच आती। कुछ महीनों बाद उनका घर फिर से सँभल गया।
गाँव की सीख
गाँव की औरतें सीमा को देख कहने लगीं—“देखो, ये है असली पत्नी। जिसने अपने पति को उसकी कमाई से नहीं, बल्कि उसकी नीयत और मेहनत से परखा।”
रवींद्र भी सबके सामने बोला—“आज अगर मैं इस मुश्किल से बाहर निकल पाया हूँ, तो सिर्फ़ अपनी पत्नी की वजह से। जिसने मुझे कभी नीचा नहीं दिखाया, बल्कि हर वक्त मेरा सहारा बनी।”
संदेश :
👉 हमसफ़र कितना कमाता है, यह मायने नहीं रखता।
👉 मायने यह रखता है कि वह आपकी खुशियों का, दुखों का और आपके अस्तित्व का कितना ख्याल रखता है।
👉 शहरों में भले पत्नियाँ बराबरी की बातें करें, पर गाँव की औरतें आज भी पति को परमेश्वर मानती हैं—क्योंकि उनके लिए परमेश्वर वही है, जो हर हाल में साथ निभाए।
पैसा सुख दे सकता है, लेकिन परवाह और सम्मान ही रिश्ते को अमर बनाते हैं। ❤️
