सभी पुरुषों को समर्पित.....
पुरुष सहज रोता नहीं है बशर्ते उसे किसी से प्रेम ना हो जाये । यदि वास्तविक रूप से पुरुष को प्रेम हो जाता है तो उसका रोना संभव है...! क्योंकि
पुरुष तो स्वभावत: ही प्रेमी होते है और उनकी सिर्फ एक ही मांग होती है । अपनी प्रेमिका के अधीन आकर अपना सर्वस्व समर्पण कर ठीक वैसे ही निश्चिंत हो जाएं जैसे एक अबोध बालक खेलते खेलते कहीं भी सो जाए लेकिन सुबह नींद अपनी माँ की आंचल तले ही खुलती है..। वास्तविक रूप से वो उस स्त्री से इतना प्रेम करता है कि उसे खोने के डर से उसके अंदर एक डरता हुआ इंसान जन्म लेता है जो सबकुछ हासिल कर के भी खुद को अपने उस स्त्री के बिना खाली हाथ समझता है और भटकता रहता है आंखों में आंसू लिए तन्हाई और अकेलेपन के बीच सुकून की तलाश में ......!
वो पुरुष है, दब चुके होते है एहसास उसके रोष के आगे,ख्वाहिशों ने तोड़ा होता है दम जिम्मेदारियों के आगे,सपने जो वो देखता है रह जाते हैं वो पिछे
जिंदगी की इस भागम - भाग मे..!खुद को भुला देता है पर ना गिला ना खफा होता है,,
जो मिला उससे दो घड़ी बात कर लिया पर उसे अंदरूनी दर्द होता है फिर भी ना जाने किस ने कह दिया "मर्द को दर्द नहीं होता....! "
वो पुरुष है और वो भी प्रताड़ित होता है,
वो भी घुटता है, पिसता है, टूटता है, बिखरता है,
भीतर ही भीतर, रो नहीं पाता, कह नहीं पाता,
पत्थर हो चुका होता है, तरस जाता है पिघलने को,
क्योंकि वो पुरुष है...।
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मैं हर स्त्री से कहना चाहूंगी कि पुरुष बहुत कठोर होता है उसका कोमल ह्रदय सिर्फ वो स्त्री देख सकती है जिसे पुरुष प्रेम करता है तो आपके जीवन में भी हों ऐसा पुरुष तो उसे जरूर समझना.... क्योंकि रोता हुआ पुरुष
इस सृष्टि का सबसे दुर्लभ दृश्य है ,
हे स्त्री . . .
तुम चूमना उसकी आंखें और कहना -
"तुम रो सकते हो"....।।
मैं हूं ना.......
