“हराम की कमाई, अय्याशी और झूठी इज़्ज़त”
शहर के बीचोंबीच एक आलीशान कॉलोनी में विक्रम नाम का व्यापारी रहता था। मेहनती और ईमानदार आदमी। वह दिन-रात पसीना बहाकर अपनी कमाई से परिवार को पालता। उसकी पत्नी माधुरी सुंदर थी, परंतु उसका मन हमेशा और ज्यादा सुख-सुविधाओं के पीछे भागता रहता।
लोभ की शुरुआत
माधुरी को घर की सुख-सुविधाएँ कम नहीं थीं, लेकिन उसकी नज़रें हमेशा दूसरों पर रहतीं।
अगर पड़ोसन के पास नया गहना होता, तो माधुरी ताने देती –“देखो, उनके पति कितने अच्छे हैं, हर महीने गहने दिलाते हैं। तुमसे तो बस रोज़-रोज़ काम ही निकलवाना आता है।”
अगर सहेली नई कार में घूमती, तो वह कहती –“मुझे भी कार चाहिए, वरना मैं दोस्तों के बीच कैसे दिखूँगी?”
विक्रम जितनी मेहनत करता, माधुरी उससे दोगुनी माँग रख देती। धीरे-धीरे उसने विक्रम को भी दबाव में लाकर गलत रास्तों की ओर धकेलना शुरू किया।
हराम की कमाई
माधुरी ने कहा –“दूसरे लोग भी तो शॉर्टकट से पैसे कमाते हैं। रिश्वत, चोरी-चकारी या गलत धंधे से ही सही, लेकिन ज़िन्दगी तो रानी जैसी जीते हैं। तुम क्यों नहीं करते ऐसा?”
विक्रम ने पहले मना किया, लेकिन पत्नी के रोज़-रोज़ के ताने और दबाव से उसका मन भी टूटने लगा। वह भी दूसरों की नकल में गलत रास्ते पर चला गया। ठेके में घूस, काला धंधा और हराम की कमाई घर आने लगी।
घर में पैसे तो बहुत आने लगे, लेकिन साथ में चैन और सुकून उड़ गया।
आजादी के नाम पर अय्याशी
पैसे की गर्मी ने माधुरी को और बिगाड़ दिया।
वह देर रात पार्टियों में जाने लगी।
दोस्तों के साथ शराब और नशे का शौक पाल लिया।
“आज़ादी” के नाम पर वह घर की जिम्मेदारियों से भागने लगी।
पति मेहनत या गलत धंधे से पैसा लाकर देता, और पत्नी उस पैसे को अय्याशी में लुटा देती।
धीरे-धीरे मोहल्ले और रिश्तेदारों में चर्चाएँ होने लगीं –“देखो, विक्रम की बीवी कितनी बिगड़ गई है।”“पैसा तो बहुत है, लेकिन घर की औरत ने इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी।”
झूठी इज़्ज़त की चाहत
माधुरी जब भी बाहर जाती, तो चाहती कि लोग उसे “रानी” कहकर सम्मान दें। वह महंगे कपड़े पहनती, गहनों से लदी रहती, लेकिन फिर भी समाज उसकी पीठ पीछे बातें करता –“पैसा तो हराम का है, औरत भी बेकाबू है। इज़्ज़त कहाँ से मिलेगी?”
लोग सामने मुस्कराकर मिलते, लेकिन पीछे से उसे “अय्याश औरत” कहकर मज़ाक उड़ाते।
अंजाम
समय बीता। विक्रम का गलत धंधा एक दिन पकड़ में आ गया। जेल जाना पड़ा।पैसा, शोहरत और रौब सब छिन गया।
अब माधुरी अकेली रह गई। जिन दोस्तों के साथ वह पार्टियों में नाचती थी, वही सबसे पहले मुँह मोड़ गए। जिन लोगों के बीच वह रानी बनने का सपना देखती थी, वही लोग अब ताना मारते –“देखो, हराम की कमाई और झूठी इज़्ज़त का यही अंजाम होता है।”
माधुरी को तब समझ आया कि इज़्ज़त गहनों, पैसों या पार्टियों से नहीं मिलती, बल्कि औरत के संस्कार, त्याग और मर्यादा से मिलती है।
शिक्षा
हराम की कमाई से कभी सुख-चैन और इज़्ज़त नहीं मिलती।
आज़ादी का मतलब अय्याशी नहीं, जिम्मेदारी और संयम है।
औरत चाहे जितना पैसा और ऐश्वर्य पाए, अगर उसका व्यवहार गलत है, तो समाज कभी उसे रानी जैसा सम्मान नहीं देगा।
👉 सच्चाई यही है – कुछ औरतों को चाहिए हराम की कमाई और आज़ादी के नाम पर अय्याशी, लेकिन फिर चाहती हैं इज़्ज़त रानी जैसी। इज़्ज़त पाना आसान नहीं, उसके लिए त्याग, मर्यादा और सही रास्ते पर चलना ज़रूरी है।
