शब्दों की कीमत
एक छोटे से गाँव में एक बुज़ुर्ग गुरु रहते थे। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। लोग जीवन की हर उलझन लेकर उनके पास आते और उनसे मार्गदर्शन पाते। उनके शब्द सुनकर लोग बदल जाते, नया रास्ता पकड़ लेते।
लेकिन उसी गाँव में एक आदमी था—रामकिशन। उसे लगता था कि वह सब कुछ जानता है, किसी से सीखने की ज़रूरत ही नहीं है। जब भी गुरुजी कुछ कहते, वह या तो बीच में टोक देता या हँसकर बात को टाल देता।
गाँव वाले हैरान रहते कि क्यों गुरुजी कभी उसे रोकते नहीं, जबकि बाक़ी सबको समझाते हैं।
एक दिन शिष्य ने गुरुजी से पूछा –"गुरुदेव, आप रामकिशन को कभी कुछ समझाते क्यों नहीं? क्या आप डरते हैं कि वह आपका अनादर करेगा?"
गुरुजी मुस्कुराए और बोले –"नहीं बेटा, डरने की बात नहीं है। देखो, अगर कोई बर्तन ही उल्टा रखा हो, तो उसमें कितना भी पानी डालो, वह भर नहीं सकता। ऐसे ही, जो व्यक्ति सुनने और समझने की चाह ही नहीं रखता, उस पर शब्द व्यर्थ करने का कोई लाभ नहीं।"
शिष्य ने समझा, लेकिन गुरुजी ने उदाहरण देकर बात और स्पष्ट की।
उन्होंने दो बीज उठाए। एक बीज को उपजाऊ मिट्टी में बो दिया और दूसरे को पत्थर पर रख दिया। फिर बोले –"समय के साथ, मिट्टी वाला बीज पेड़ बनेगा, छाया देगा, फल देगा। लेकिन पत्थर पर रखा बीज चाहे जितना भी अच्छा हो, वह कभी अंकुरित नहीं होगा। उसी तरह, शब्द भी तभी काम करते हैं जब सामने वाला उनके अर्थ को ग्रहण करने के लिए तैयार हो।"
गाँव वाले गुरुजी की इस शिक्षा से गहराई तक प्रभावित हुए। सबने सीखा कि हर किसी से तर्क करना, हर किसी को समझाने की कोशिश करना ज़रूरी नहीं। असली बुद्धिमानी यह है कि अपनी ऊर्जा वहीं लगाओ, जहाँ उसे समझा और अपनाया जाए।
रामकिशन धीरे-धीरे अकेला पड़ने लगा। लोग उससे बहस करना छोड़ चुके थे। जब उसने देखा कि सब गुरुजी के पास जाकर समाधान पा रहे हैं और वह वहीं का वहीं खड़ा है, तो उसे अपनी गलती समझ आई। तभी पहली बार वह गुरुजी के पास जाकर बोला –"गुरुदेव, अब मैं सुनने और सीखने के लिए तैयार हूँ।"
गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा –"देखा बेटा, अब तुमने अर्थ समझा है, तो शब्द अपने आप असर करेंगे।"
सीख ✨
कभी-कभी हम अपनी ऊर्जा, अपनी भावनाएँ और अपने शब्द उन लोगों पर खर्च कर देते हैं जो सुनने और समझने के लिए तैयार ही नहीं होते। ऐसे में निराश होने की ज़रूरत नहीं। बुद्धिमानी यही है कि शब्द वहाँ लगाए जाएँ, जहाँ उनके अर्थ की क़द्र हो।
👉 "जो अर्थ ही न समझें, उस पर शब्द व्यर्थ करके क्या फायदा।"
