एक छोटे से कस्बे में तीन दोस्त रहते थे – आदित्य, करण और विशाल। तीनों की सोच अलग थी लेकिन दोस्ती गहरी थी।
आदित्य बचपन से ही बहुत भावुक और संवेदनशील था। वह किसी के भी दुख को अपना दुख समझता, रिश्तों को निभाने के लिए अपनी खुशी और आराम तक कुर्बान कर देता। उसके लिए दोस्ती, प्यार और परिवार सबसे ऊपर थे।
दूसरी ओर, करण बेहद प्रैक्टिकल था। उसके लिए रिश्ते उतने ही मायने रखते थे, जितना उसमें उसका कोई फ़ायदा हो। वह दोस्ती भी निभाता था लेकिन तब तक जब तक उसे उससे करियर, पैसा या नाम का कोई लाभ मिलता रहे।
और तीसरा विशाल था, जो रिश्ते बनाता ही फ़ायदे देखकर था। अगर किसी से उसे कोई सुविधा, धन या अवसर नहीं मिलता तो वह उस इंसान से दूरी बना लेता। उसके लिए रिश्ते एक गणित की तरह थे— जहाँ केवल लाभ-हानि का हिसाब चलता था।
कहानी का मोड़
तीनों ने साथ में कॉलेज किया। पढ़ाई पूरी होने के बाद आदित्य ने सोचा कि सबको एक-दूसरे के काम आना चाहिए। उसने करण को अपनी छोटी-सी नौकरी से मदद की, ताकि करण को बिज़नेस शुरू करने के लिए पैसे मिल जाएं। करण ने वादा किया कि वह आगे चलकर सबको साथ लेकर चलेगा।
आदित्य ने बिना सोचे-समझे अपनी बचत तक दे दी।
करण ने बिज़नेस शुरू किया और धीरे-धीरे आगे बढ़ गया। इस बीच विशाल ने करण से नज़दीकियां बढ़ा लीं, क्योंकि अब करण उसके लिए सुविधा और लाभ का साधन बन गया था।
करण ने भी प्रैक्टिकल सोच से आदित्य को धीरे-धीरे किनारे करना शुरू कर दिया। उसे लगा कि आदित्य अब उसके किसी काम का नहीं, क्योंकि वह भावुक होकर सिर्फ देने वाला है, लेने वाला नहीं।
आदित्य की परीक्षा
जब करण और विशाल एक साथ बिज़नेस में चमक रहे थे, तभी करण के बिज़नेस पर मुसीबत आ गई। टैक्स और कर्ज़ के चक्कर में वह डूबने लगा। विशाल, जिसने फायदा देखकर रिश्ता बनाया था, सबसे पहले दूरी बना ली।
करण ने जब मदद के लिए आदित्य से संपर्क किया, तो आदित्य ने बिना कोई शिकायत किए उसकी मदद की। उसने कहा –“दोस्ती का मतलब ही मुश्किल समय में साथ खड़ा होना है। अगर मैं तेरे साथ न खड़ा हुआ तो फिर भावुकता और रिश्तों का क्या मतलब रह जाएगा?”
सच्चाई सामने आई
करण की आंखें भर आईं। उसे समझ आया कि प्रैक्टिकल सोच से बने रिश्ते लंबे नहीं चलते। फायदा देखकर बनने वाले रिश्ते तो पहले तूफ़ान में ही टूट जाते हैं।
वास्तविक रिश्ते वही होते हैं, जो दिल से निभाए जाते हैं।आदित्य की भावुकता ही उसकी ताक़त थी, जो उसे हर किसी से अलग बनाती थी।
अंत
करण ने अपनी गलती मानी और आदित्य से माफ़ी मांगी।विशाल, जो सिर्फ फ़ायदा देखकर रिश्ते बनाता था, अकेला पड़ गया।और आदित्य, जिसने रिश्तों को दिल से संभाला, वही आख़िर में सबसे मज़बूत और सच्चा साथी साबित हुआ।
सीख यही है –
भावुक लोग शायद दुनिया की नज़र में कमजोर लगते हैं,
लेकिन वही लोग रिश्तों को ज़िंदा रखते हैं।
प्रैक्टिकल लोग और फ़ायदा देखने वाले लोग रिश्ते बना तो लेते हैं, पर निभा नहीं पाते।
