मैंने सीखा है—अपने लिए जीना पड़ता है।
मैं ज़िंदगी की भीड़ में बहुत कुछ झेल चुकी हूँ।
बहुत से चेहरे पहचाने हैं। बहुत सी बातें सुनी हैं—कुछ सीधे तौर पर, कुछ कानों के फुसफुसाहट में।
शुरू-शुरू में बहुत बुरा लगता था।
ऐसा लगता जैसे किसी ने मेरे अंदर को टुकड़ों में काट डाला हो।
सामने हँसी, पीछे ज़हर—यह दोहरी व्यवहार मुझे हैरान कर देता था।
मैं सोचती थी, क्यों? मैंने तो किसी का क्या बिगाड़ा है?
मैंने तो सबको अपना ही माना था।
फिर एक दिन समझ में आया—हर कोई अपना नहीं होता।
हर कोई आपके भले की कामना नहीं करता।
कई लोग बस इस इंतज़ार में रहते हैं कि आप कब गिरें, कब टूटें, ताकि वे चुपचाप उस पर खुश हो सकें।
तभी मैंने फैसला किया—अब नहीं।
अब मैं अपनी शांति, अपना सम्मान—अपने ही हाथ में रखूँगी।
किसी की बात पर ध्यान नहीं दूँगी, किसी की तिरस्कार भरी निगाह मुझे नहीं छू सकेगी।
जब किसी ने कहा, "तुमसे नहीं होगा," तब मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
सिर्फ मुस्कराई। क्योंकि मैं जानती हूँ, वे मेरे जीवन की कहानी के लेखक नहीं हैं।
मेरी कहानी मैं खुद लिखूँगी।
मेरी असफलता की भी मैं ही मालिक हूँ, और मेरी सफलता की भी।
मैंने सीखा है—हर सवाल का जवाब नहीं देना होता।
हर अपमान का प्रतिरोध नहीं करना होता।
चुपचाप अपने रास्ते पर चलते रहना होता है।
चुप रहना कमजोरी नहीं है, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है।
अब मैंने एक अलग तरह की ज़िंदगी चुन ली है।
जब लोग पीछे से बातें करते हैं, मैं आगे का रास्ता खोजती हूँ।
जब लोग मुझे छोटा करने की कोशिश करते हैं, मैं और ऊँचा उठती हूँ।
और जब वे ज़हर फैलाते हैं, मैं गुलाब की खुशबू सूँघती हूँ।
अब मैं जानती हूँ—किसी के लिए रुकूँगी नहीं।
किसी की कड़वाहट का स्रोत नहीं बनूँगी।
अब मैं अपने लिए वक़्त निकालती हूँ—
एक कप चाय में आनंद लेती हूँ, अपनी पसंदीदा किताब पढ़ती हूँ, छत पर चढ़कर आसमान निहारती हूँ,
पुरानी तस्वीरों में खो जाती हूँ।
मैं जीती हूँ—अपने लिए जीती हूँ।
मैंने सीखा है—कुछ रिश्तों को छोड़ देने से ज़िंदगी हल्की हो जाती है।
कुछ कड़वाहटें दिल से मिटा देने से साँसें गहरी हो जाती हैं।
हर किसी को साथ लेकर नहीं चला जा सकता—यह स्वीकार करना होता है।
क्योंकि जीवन की राह में अकेले ही चलना होता है—अपनी परछाईं को साथ लेकर।
आज मैं आभारी हूँ!
उन तमाम चोटों की,
जिन्होंने मुझे तोड़ा नहीं बल्कि निखारा।
उन तमाम तन्हाइयों की,
जिन्होंने मुझे खुद से प्यार करना सिखाया।
अब मैं जानती हूँ—
मैं किसी की कसौटी नहीं हूँ, किसी की कहानी नहीं हूँ।
मैं अपनी ही कहानी हूँ।
अपना ही सृजन।
अपनी ही शक्ति।