“जवानी के आशिक और बुढ़ापे की तन्हाई”
शहर के एक मोहल्ले में सुनीता नाम की औरत रहती थी। जवानी में वह बहुत ख़ूबसूरत थी—गोरी, लंबी, और आँखों में कशिश। उसकी सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक थी।
सुनीता को यह ध्यान भाता था कि मोहल्ले के लड़के उसकी एक झलक पाने के लिए सड़क पर खड़े रहते। कॉलेज में तो उसके पीछे जाने कितने लड़के पागल थे। सुनीता को यह सब अच्छा लगता। वह हँसकर, आँखों से इशारा कर, कई लड़कों को अपने पीछे लगा देती।
पति की अनदेखी
समय के साथ उसकी शादी राजेश से हो गई। राजेश सीधा-सादा आदमी था। वह अपने काम से काम रखने वाला, परिवार के लिए मेहनत करने वाला इंसान था।
लेकिन सुनीता को पति का यह सरल स्वभाव रास नहीं आया। उसे बाहर के लोग, उनकी बातें और उनकी झूठी तारीफें ज़्यादा आकर्षित करती थीं। वह अक्सर पति की भावनाओं की अनदेखी कर देती और बाहर की दुनिया में अपनी मोहब्बत तलाशती।
राजेश ने कई बार समझाया –“सुनीता, दुनिया की भीड़-भाड़ और झूठे रिश्ते लंबे नहीं चलते। असली सहारा तो अपना घर और अपना जीवन साथी ही होता है।”लेकिन सुनीता ने कभी उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
बुढ़ापे की दस्तक
समय तेज़ी से बीता। जवानी ढल गई। चेहरे की चमक कम हो गई।वह लड़के, जो कभी उसके पीछे घूमते थे, अब अपने-अपने परिवार में व्यस्त हो चुके थे।सुनीता का आकर्षण मिट चुका था, और उसके लिए कोई रुकने वाला न रहा।
दूसरी ओर राजेश, जिसने जीवन भर मेहनत की थी, बीमारियों से जूझते हुए भी अपनी पत्नी का सहारा बनता रहा। लेकिन सुनीता ने कभी उसके प्यार और त्याग की क़दर नहीं की।
तन्हाई का सच
एक दिन राजेश की बीमारी बढ़ गई और वह इस दुनिया को अलविदा कह गया। अब सुनीता बिल्कुल अकेली थी।उसके बच्चे भी उससे दूर हो गए क्योंकि उन्हें याद था कि माँ ने अपने पति की इज़्ज़त नहीं की थी।
सुनीता हर शाम खिड़की पर बैठी रहती और सोचती—“जवानी में मेरे पास कितने आशिक थे, लेकिन बुढ़ापे में एक सहारा भी नहीं बचा। वो सब झूठे रिश्ते थे। असली रिश्ता तो सिर्फ मेरा पति था, जिसे मैंने कभी क़दर नहीं दी।”
उसकी आँखों से आँसू बहते, लेकिन अब पछताने से क्या होता?
शिक्षा
जवानी का सौंदर्य और झूठी मोहब्बतें क्षणिक होती हैं।
सच्चा और आखिरी सहारा वही होता है, जो जीवनसाथी ताउम्र आपके साथ निभाता है।
पति-पत्नी के रिश्ते में वफ़ादारी और सम्मान सबसे बड़ी पूँजी होती है।
अगर पत्नी अपने पति को ठुकराकर दूसरों के पीछे भागेगी, तो बुढ़ापे में उसके पास सिर्फ़ तन्हाई और पछतावा रह जाएगा।
✨ इसलिए याद रखिए –“जवानी में कितने भी चाहने वाले क्यों न हों, लेकिन बुढ़ापे का सहारा सिर्फ़ पति या पत्नी ही होता है। वही रिश्ता ज़िंदगी का सच्चा खज़ाना है।”
बुढ़ापे में एक सहारा तक ना मिला उस औरत को
जिसके जवानी में न जाने कितने आशिक थे!!
इस लिए अपने पति के लिए वफ़ादार रहिए क्यों की बुढ़ापे का सहारा सिर्फ़ अपना जीवन साथी होता हैं और कोई नहीं!!
