ये इसलिए नहीं कि प्यार खत्म हो गया है, बल्कि इसलिए क्योंकि संघर्ष दिखते नहीं हैं।
गर्भावस्था और प्रसव एक मां को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से पूरी तरह बदल देते हैं।
फिर भी उसके संघर्षों को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
लोग कहते हैं, "वो हमेशा गुस्से में रहती है।"
लोग पूछते हैं, "इतनी चिड़चिड़ी क्यों हो गई है?"
लेकिन वो नहीं देख पाते –
नींद से भरी रातें, चुपचाप बहते आंसू, और बच्चे के लिए किए गए अनगिनत बलिदान।
मातृत्व कोई मदद की पुकार नहीं है – ये सहनशक्ति की परीक्षा है।
लेकिन ये सफर थोड़ा आसान हो सकता है अगर मिले:
समझदारी, धैर्य, और खुले दिल से की गई बातचीत।
उसे कोई "बचाने वाला" नहीं चाहिए...
उसे चाहिए कोई जो बस उसके साथ खड़ा रहे।
हां, बच्चों के बाद रिश्ते बदलते हैं,
पर टूटना ज़रूरी नहीं।
अगर हो सब्र, सहानुभूति और सच्चा साथ,
तो हर संघर्ष के बीच प्यार और भी गहरा हो सकता है।
हर मां को सलाम –
आपकी ताकत देखी जाती है,
आपका दर्द महसूस किया जाता है,
और आपका दिल सम्मान पाता है।
आप अद्भुत हैं।
