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हल्की फुल्की सी है ज़िंदगी.।बोझ तो ख्वाहिशों का हैं..।।

  • Writer: ELA
    ELA
  • Jun 13
  • 1 min read

"हल्की-फुल्की सी है ज़िंदगी, बोझ तो ख्वाहिशों का है" — ये पंक्तियाँ जीवन की सादगी और हमारी अपेक्षाओं की जटिलता को उजागर करती हैं। असल में ज़िंदगी उतनी कठिन नहीं होती जितनी हम उसे बना लेते हैं। उसका मूल स्वरूप तो सरल, शांत और सहज होता है। लेकिन जब हम उस पर अनगिनत ख्वाहिशों, अपेक्षाओं और लालसाओं का बोझ डालने लगते हैं, तो वही ज़िंदगी भारी लगने लगती है। हर चाहत, हर तुलना, हर अधूरी ख्वाहिश धीरे-धीरे हमारे कंधों पर ऐसा बोझ बन जाती है, जो हमें थका देती है। अगर हम चाहें तो इस बोझ को कम कर सकते हैं — थोड़ा संतोष, थोड़ा सरलता और थोड़ा स्वीकार। तब ज़िंदगी सचमुच हल्की-फुल्की लगेगी, एक ताजगी भरी हवा की तरह।


हल्की फुल्की सी है ज़िंदगी.।
बोझ तो ख्वाहिशों का हैं..।।
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हल्की फुल्की सी है ज़िंदगी.।
बोझ  तो  ख्वाहिशों  का  हैं..।।

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