कुछ लोग ऐसे छूटे सफ़र में.
- ELA
- Jun 20
- 2 min read
"कुछ लोग ऐसे छूटे सफ़र में कि अब साथ चलने वाले भी डराने लगे" — यह पंक्ति उस दर्द को बयां करती है, जब भरोसे का टूटना इंसान के अंदर एक गहरी दरार छोड़ जाता है। ज़िंदगी के किसी मोड़ पर कुछ अपने इतने बेवजह और बेरहमी से साथ छोड़ जाते हैं कि अब हर नया रिश्ता, हर नई शुरुआत में भी डर समा जाता है। जहाँ पहले साथ का मतलब सुकून होता था, अब वही साथ अनजाना सा लगने लगता है। दिल भरोसा करने से पहले हज़ार बार सोचता है और मन बार-बार उसी पुराने दर्द की दहलीज़ पर लौट जाता है। ऐसे अनुभव इंसान को मजबूत तो बना देते हैं, लेकिन अंदर कहीं न कहीं अकेला भी कर जाते हैं।'
कुछ लोग ऐसे छूटे सफ़र में.!
कि अब साथ चलने वाले भी डराने लगे..!!
Some people got left behind in the journey in such a way that now even those who were walking with them started scaring them..!!

कुछ लोग ऐसे छूटे सफ़र में.!
कि अब साथ चलने वाले भी डराने लगे..!!
"कुछ जख्म ऐसे दिए अपनों ने, कि अब हर मुस्कान में साज़िश दिखती है।"
"इतना टूटा हूँ अपने ही लोगों से, कि अब अजनबी भी खौफ से भरते हैं।"
"कभी जिनपर भरोसा था, आज उन्हीं जैसे लोगों से फासला चाहिए।"
"कुछ रिश्तों ने ऐसी ठोकर दी कि अब हमसफर का भी डर सताता है।"
"इतना खोया अपनों में, कि अब कोई साथ भी दे तो यकीन नहीं होता।"
"जिन्होंने बीच राह छोड़ा, उन्होंने साथ के मायने ही बदल दिए।"
"अब सफ़र में डरते हैं, क्योंकि पीछे से अपनों ने ही धक्का दिया था।"
"हर रिश्ता आजमाने से पहले अब खुद को बचाना पड़ता है।"
"कुछ छूटे इस तरह, कि जो पास हैं उनका भी साथ भारी लगने लगा।"
"अब नज़दीकियाँ डराती हैं, क्योंकि दूरी ने बहुत कुछ सिखा दिया है।"
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